________________ पछि काया की मलीनता, वचन की मलीनता से अत्यन्त भयंकर है मन की मलीनता। मन की मलीनता आत्मा को अन्तर्मुहूर्त के अंदर सप्तम नरक में भेज देती है। छ चारित्र - साधुवेश की प्राप्ति दुर्लभ है। परन्तु इससे भी अत्यन्त दुर्लभ है श्रद्धा की प्रप्ति / सम्यग्दर्शन से भी अत्यन्त दुर्लभ है सम्यग्दर्शन पूर्वक का चारित्र। छठ परमात्मा की परम पावन उपस्थिति में प्रभु के शिष्य संसारी पक्षे ___ जवाईराज ने ही प्रभु के सिद्धान्त को अस्वीकृत कर दिया। इसे ही कहते हैं मोह राजा का साम्राज्य। र जगत में अनेक मानवों ने धर्म की प्ररुपणा की है। उन धर्मों की व्याख्याओं को समझकर जो धर्म अपने को दुर्गति से बचा सके उसी धर्म का स्वीकार करना बुद्धिमान का कर्तव्य है। पल एक दुकान प्लास्टीक के फलों से सजी हुई है। वे प्लास्टीक के फल बहुत ही सुंदर दिख रहे हैं। क्या वे सुंदर फल किसी की क्षुधा को शांत कर सकते हैं ? वैसे ही केवल बाह्य से सुन्दर दिखायी देने वाला धर्म आत्मा को दुर्गति से नहीं बचा सकता। छर दुसरों के दुर्गणों को बार-बार दुसरों के सामने दोहराना इसका अर्थ अपने आपको दुर्गुणी बनाना।। छर विश्वविजेता बनना सहज हो सकता है परन्तु इंद्रिय विजेता बनना तो अत्यन्त कठिन है। ॐ देव-गुरु में 'सु' एवं 'कु' के भेद को सूक्ष्म रीति से समझे, जाने बिना उपासना करने वाला आत्मा कभी तीव्र अशुभ कर्मबंध भी कर लेता है। सुदेव और सुगुरु को कुदेव-कुगुरु मानकर उनका तिरस्कार आदि कर ले तो तीव्र अशुभकर्म बंध हो जाता है। संसार भ्रमण सीमातीत बढ़ जाता है। -जयानंद