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दूसरे दिन देव पूजा के अवसर पर अपने संग्राहित रत्नों में से एक हजार उस पेटी में रखकर दूसरी औषधि की पूजाकर पांचसौ रत्न लेकर बाहर आया । रतिमाला ने औषधि से रत्न मांगे थे। पर विधि मालूम न होने से कुछ न मिला । वह छिपकर जयानंदकुमार की बात सुन रही थी । उसने सोचा 'मैं भूल से दूसरी औषधि ले आयी हूँ।' फिर कुमार ने अपनी पत्नी से कहा 'तू चाबी तेरी माँ की नजरों में आये वैसे रखना । फिर रतिमाला ने चाबी लेकर पहले की औषधि रखकर दूसरी ले ली। फिर उसके पास रत्नों की याचना की । परंतु साधना विधि के बिना वह न बोलती हैं न देती है। जयानंदकुमार ने सोचा यह औषधि आ गयी अब दूसरी तो सरलता से ले लूंगा । रतिमाला ने एकदिन जयानंदकुमार से पूछा "विज्ञान आदि कुछ जानते हो?" कुमार ने कहा "मैं अनेक औषधि जानता हूँ। सभी कला मंत्र-विज्ञान आदि जानता हूँ । उसमें एक मंत्र ऐसा है, जिसकी विधि वृद्धा और कुरूप स्त्री पूर्ण रूप से करे तो वह नवयौवना
और सुरूपा हो जाती है। गणिका ने कहा" मुझे ऐसी बना दो । जिससे नृप द्वारा मान्य अन्य नारियों के गर्व को दूर कर दूं।" जयानंदकुमार ने कहा "तो प्रातः शिर मुंडवाकर, मुँह स्याही से पोतकर, उपवासकर के यह मंत्र जप । “रूड् बुडु बुडु बुडु बुडु स्वाहा" जब वह ऐसा कर शाम को उसके पास आयी तब जयानंदकुमार ने बाह्याडंबरकर औषधि के द्वारा उसे शूकरी बना दी । फिर सांकल द्वारा स्तंभ से बांधकर कहा "पापिनी! मेरी औषधि ग्रहणकर पुत्री पर दोष देती है। इसलिए चोरी का फल भोग।" उस प्रकार कहकर दंड से उसे पीटा । अब वह रोती है, और मूल स्वरूप में लाने की विनती करती है। दो दिन तक उसे उसी प्रकार रखी, फिर पत्नी के आग्रह से औषधि को वापस लेकर, पुनः चौर्य कर्म न करने की प्रतिज्ञा करवाकर, उसे मूल स्वरूप में ले आया । रतिमाला ने पुत्री और जामाता से क्षमायाचना की ।
एकबार कुमार ने कहा "माते ! पूजनीय होने पर भी मैंने