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(४) इससे अर्धमानवाली नीली औषधि स्वमंत्र से मंत्रित चेतन, | अचेतन के मस्तक पर रखने से अतीत अनागत जो पूछे, उसका ज्ञानी के समान सम्यक् प्रत्युत्तर देती है। मंत्र साधना पूर्ववत् मंत्र यह-"ॐ महाघण्टे चण्डे चण्डशासने प्रश्नार्थं वद वद के झै स्वाहा ।"
(५) पाँचवी श्याम औषधि पानी से सिंचन करने पर दुष्टकार्मण, दुष्टमंत्र, दुष्टचूर्ण, दुष्ट औषधि से संभवित दोषों का नाश करती है। इस प्रकार पाँचों औषधि के स्वरूप को सम्यक् प्रकार से समझकर हर्षित होकर जयानंदकुमार साधक के पास देव सहित आया ।
देव ने कहा "हे भद्र ! कुमार के अनुभाव से मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ । अत:ध्यान तजकर मेरे आदेश से इच्छानुसार औषधि ले ले । साधक ने भी प्रसन्नता पूर्वक देव की पूजा की । फिर कुमार को पूछकर, कार्य होने पर मेरा स्मरण करना ऐसा कहकर, नमस्कारकर, देव अपने स्थान पर गया । साधक ने भी उस पर्वत पर घूम घूमकर अपने भाग्यानुसार औषधि ग्रहण की। फिर कुमार को कहा "तेरे प्रभाव से मेरी इच्छा पूर्ण हुई। आपकी आज्ञा से मैं स्व स्थान पर जाता हूँ। कुमार ने उसे अनुमति दी। कुमार भी पल्यंक पर बैठकर रत्नपुर के उपवन में आया । वहाँ चैत्य देखा । आशातना के भय से कुछ दूर पल्यंक से नीचे उतरकर उस चैत्य में प्रवेशकर जिनेश्वर को वंदन किया । फिर मंत्र साधन योग्य स्थल देखकर पल्यंक किसी स्थानपर छूपाकर तीन उपवासकर विधिपूर्वक तीनों मंत्रों से औषधि को सिद्ध कर फिर परमेश्वर की पूजाकर फलों से पारणाकर, प्रथम औषधि से पांचसौ रत्न प्राप्त किये । फिर वहाँ अष्टाह्निका पूजोत्सवकर रत्नपुर में प्रवेश किया। एक मकान किराये का लेकर साधारण श्रावक के घर निवास किया। एक गोशीर्ष-चंदन की प्रतिमा छोटी बनवाकर गुरु से प्रतिष्ठा,करवाकर, नित्य पूजाकर आद्य औषधि से पाँचसौ रत्न प्रतिदिन प्राप्त करता था एक पेटी में वह प्रतिमा और पाँचो औषधियाँ गर्भग्रह में सुरक्षित स्थान