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सिंह रूप से उसे हराया। इस प्रकार सब युद्धों में उसे अजय मानकर विकराल रूप बनाकर एक हाथ में डमरू, दूसरे हाथ में नाग, तीसरे हाथ में मुद्गर और चौथे हाथ में तलवार लेकर पैरों से पृथ्वी कंपाता हुआ बोला'' मैं इस पर्वत का 'मलयमाल' नाम का क्षेत्रपाल हूँ। तेरे साथ सुअर आदि रूप से युद्ध की बालक्रीड़ा की है। तुझ से हारा वह तेरी बाल क्रीड़ा को पुष्ट करने हेतु । अब तू मुझे जीतने की आशा छोड़ दे। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। जीने की आशा रखता हो तो दूर चला जा । दूसरों के लिए तुझे मारने से मुझे यश नहीं | मिलेगा ।'' जयानंद ने कहा "युद्ध तेरे लिए क्रीड़ा बना, मेरे लिए परोपकार हुआ । वय एवं शरीर से बड़ा नहीं माना जाता । लेकिन शक्ति से और तेज से बड़ा होता है, वही बड़ा है। कहा है-''
हाथी बड़ा है पर अंकश के वश है, पर्वत वज्र से गिर जाते हैं। दीपक के प्रकट होने पर अंधकार चला जाता है। इसलिए छोटे बड़े का कोई प्रश्न ही नहीं ।
धीर पुरुषों की मृत्यु भी परोपकार के लिए होती है। जिसके धर्म-यशरूपी प्राण स्थिर हैं, वे मरकर भी जीवित हैं । इसलिए जय या पराजय तो युद्ध में जानी जायगी । तुझे मेरी शक्ति का अंदाज पहले के युद्ध में नहीं आया हो, तो फिर से युद्ध कर।" इस प्रकार पुनः जय से तर्जित वह क्षेत्रपाल मुद्गर उठाकर कुमार को मारने दौड़ा । तब औषधि के प्रभाव से उसके जैसा रूप बनाकर जयानंद नमस्कार मंत्र का स्मरणकर उसे मारने दौड़ा । दोनों का भयंकर युद्ध हुआ । कुमार ने विघ्नहर औषधि के बल से और धर्म प्रभाव से तलवार से उसके डमरु के, सर्प के, मुद्गर के और तलवार के सौ सौ टुकड़े कर दिये । पुन्य से क्या सिद्ध नहीं होता ? । फिर कुमार ने उसको शस्त्र रहित जानकर तलवार छोड़ दी । फिर क्षेत्रपाल ने वृक्ष उठाया। कुमार ने भी वृक्ष से उसके वृक्ष को चूर्णकर दिया । फिर नये-नये