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में झुठसाक्षी का पाप अधिक है । तब कौए ने कहीं से अंगारे लाकर ग्रामलोकों के घरों पर डालकर जलाया। ग्रामवासि जलकर मरें और दुर्गति में गये। अतः हे सिंहसार! इस कथा को सुनकर तू ठाकुर की बात पर विश्वास मत कर ।
तंब सिंह ने कहा "ऐसे कूट कथानकों से मुझे क्यों ठग रहा है ? क्योंकि पशु मनुष्य के जैसी चेष्टा नहीं कर सकते ।" जयानंद ने कहा यह सत्य है, परन्तु हंस कौए की इस चेष्टा का कारण सुन ।
इस ग्राम में श्रीमुख यक्ष लोगों के द्वारा पूजा जाता है। और नंदीपुर में नंदीयक्ष उसका मित्र है । एकबार श्रीमुख नंदीयक्ष के घर गया । मित्र ने स्वागत किया । श्रीमुख ने नंदीयक्ष से कहा "तू मेरे वहाँ क्यों नहीं आता?"
तब नंदीयक्ष ने कहा-"तेरे ग्रामजनों के डर के मारे नहीं आता । ये ज्ञान विकल है ।" श्रीमुख ने कहाँ परीक्षा के बिना मुझे विश्वास नहीं होगा । तब वे दोनों हंस-कौआ बनकर वहाँ गये और पूर्व कथित परीक्षा ली । इससे हंस कौओ की कथा को सत्य मान ।' और उत्तम पुरुष आनंदराज के समान झुठ नहीं बोलते । सिंह के पूछने पर जयानंद ने यह कथा कहीं ।।
नंदीपुर में आनंद नाम का राजा सत्यवादी, उत्तम प्रकृतिवान, पापभीरु, बल-भाग्य-पराक्रम में प्रौढ़, बत्तीस लक्षणवंत, अनेक राजाओं से सेवित आर्हत् धर्मपालक था । वह अति ऋद्धिवान होने से एक क्रोड़ मूल्य के आभूषण शरीर पर धारण करता था । एकबार राजा अलंकार व सैन्यसहित अश्व घूमाने के लिए गया। वहाँ अचानक राजा का अश्व आकाश में उड़ा और राजा को एक अटवी में ले गया। राजा घोड़े पर से कूद पड़ा । अश्व अदृश्य हो गया। तब राजा विस्मित होकर इधर-उधर देखता है। इतने में चार चोर आयुध सहित वहाँ आये । राजा अंश मात्र भी डरे बिना