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प्रभाव से और तेरी कृपा से हम कृतार्थ हो गये।" उसे हाथी पर बिठाकर स्वयं उसके पास बैठकर बाजे गाजे के साथ एवं जयजयकार पूर्वक युद्ध के मैदान से चले । पद्मरथ के मंत्री आदि सेना को उचित स्थान पर अपने-अपने शिबिरों में भेज दिया । पद्मरथ का पिंजरा नगर में ले गये । राजमहल में जाकर राजा ने सब को भेज दिया । सभी अपने-अपने स्थान पर गये । स्नान भोजनादि से निवृत्त होकर सभी ने उस दिन विश्राम किया । चारों ओर ब्रह्मवैश्रवण के गुणों की और पराक्रम की चर्चा हो रही थी । मायावी विप्र के आदेश से पिंजरे में बंध पद्मरथ को भोजन करवाया गया । वह उसके पराक्रम को और अपने अशुभ कर्मों का विचार करता हुआ पिंजरे में रहा ।
प्रातः समय पर राजा राजसभा में आया । ब्रह्मवैश्रवण को अपने पास अर्द्ध सिंहासन पर बिठाया। उसके आदेश से पद्मरथ को पिंजरे सहित वहाँ लाया गया । विप्र ने उसे बाहर निकलवाकर कहा " रे ! बेटी की विडंबना का फल देख । रे अधम ! इससे भी तेरे दुःख का अंत नहीं होगा । उसके पास आकर निपुणता पूर्वक उसके मस्तक पर हाथ रखकर औषधि द्वारा उसे (मर्कट) बंदर बना दिया । लोहे की सांकल लगा दी। सभा आश्चर्यचकित हो गयी | ब्रह्मवैश्रवण ने आदेश दिया कि इस मर्कट को नगर में प्रति दुकान, घर, तीन मार्ग, चार मार्ग आदि पर चाबुक से मारते हुए घूमाओ तब इसकी बुद्धि ठिकाने आयगी ।' जब सैनिक उसे पकड़ कर ले जाने लगे तब कमला पति की ऐसी विडंबना देखकर दुःखी होकर, ( अपने भाई) से विनति करने लगी कि " हे भाई! इस कार्य को मत करवा । इससे मेरी, और तेरी इज्जत को दाग लगेगा । क्योंकि किये हुए अपराधवाला पति भी प्रतिव्रता के लिए आराध्य ही है । फिर ब्रह्मवैश्रवण से कहा वत्स! मुझ पर कृपा करके मेरे पति को छोड़ । माता के वचन व्यर्थ मत जाने देना
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