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जायँ, दुर्ग में रहकर युद्ध किया जायँ । राजा ने कहा 'यह अयोग्य है । युद्ध मैदान में करेंगे । वीर पुरुष देश का अपमान सहन नहीं करते ।" ब्रह्मवैश्रवण ने कहा "राजन् ! यह सत्य है । शत्रु भय को दूर कर दो। दुर्ग सज्ज करने का कोई काम नहीं, शत्रु को जीत ने के लिए शीघ्र चले । अकेला मैं उसे जीत लूंगा । आप सभी साक्षी रूप में रहना । जैसे आपने मेरा विस्मयकारी नाटक देखा, वैसे युद्ध भी देखें ।" राजा उसके वचनों से अत्यंत प्रमुदित हुआ । राजा ने | मंगलाचारकर देव - गुरु की स्तवनाकर, सर्वविघ्न हर परमेष्ठि मंत्र का स्मरणकर, हस्ति पर आरूढ होकर शुभ शकुनों से प्रेरित सर्व सैन्य सहित नगर से प्रयाण किया । ब्रह्मवैश्रवण भी आयुधों से सज्ज होकर रथ में बैठकर राजा के साथ चला तब कमला ने मंगल कर के विप्र से कहा " तुम कोई अलौकिक पुरूष हो, पर युद्ध में मेरे पति का वध मत करना ।" विजया ने भी कहा " मेरे पिता को सुरक्षित रखना।" उसने दोनों को आश्वासन दिया । पद्मरथ की सेना से अर्द्धसेना भी जिसके पास में नहीं, ऐसा कमलप्रभ उत्साहपूर्वक अपने देश की सीमा तक पहूँच गया । पद्मरथ भी मार्ग में आनेवाले सरोवर आदि का जल शोषित करता हुआ, सामने आ गया। शाम हो गयी थी । रात को सभीने शस्त्र सज्ज कर नींद ली । प्रातः रणकौतुकी सूर्य उदय हुआ । दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ । पद्मरथ की सेनाने कमल प्रभ की सेना को पीछे हठ करने के लिए मजबूर कर दिया । अपनी सेना की हार होते देख कमलप्रभ राजा स्वयं युद्ध के मैदान में जाने की तैयारी करने लगा । ब्रह्मवैश्रवण ने उसे | रोककर स्वयं युद्ध के लिए गया । इधर पद्मरथ भी सामने आया । पद्मरथ ने ब्रह्मवैश्रवण से कहा 'रे भिक्षुक, तेरे शरीर पर गिरते मेरे बाणों को लज्जा आ रही है। तू भिक्षा के लिए जा । दूसरों के लिए स्वयं क्यों मर रहा है ? यह ताम्रपात्र ले जा । राजाओं के लिए
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