________________
कौन है ? तेरा नाम क्या है ? कहाँ रहता है?'' उसने कहा "पिठर नामका भिल्ल घर के अभाव में पद्मकर पर्वत की गुफा में रहता हूँ। आपके नगर में काष्ठ बेचने के लिए रोजाना आ रहा हूँ। “राजा ने कहा" क्या मेरे नगर में भी तू दुःखी है? मेरे नगर निवासी का मैं दुःख सहन नहीं कर सकता।'' उसने कहा "स्वर्ग के समान आप के नगर में मैं मेरे कर्मों से दःखी हँ। जल से भरे तालाब में भी चातक पक्षी तृषा से पीड़ित रहता है।' राजा ने कहा "जो इच्छा हो, सो मांग!'' वह बोला "काष्ठ बेचकर उदर पूर्ति करता हूँ। भाग्य से अधिक पुरुषों के पास धन नहीं रहता, जैसे चातक के द्वारा पिया पानी भी गले के छिद्र से निकल जाता है। इसलिए हे राजन् ! आपके तुष्ट होने पर भी मैं धनादि की याचना नहीं करता । परंतु धान्य रांधनेवाली नहीं है। इसलिए मुझ जैसी एक कन्या हो तो दो। राजा ने कहा देता हूँ। फिर विजयसुंदरी को बुलाकर कहा "हे पुत्री ! यदि तू जैनधर्म से सुख को मानती है और वही तेरा सर्वस्व है, तो इस भिल्ल को पति रूप में स्वीकार कर। अगर तू धर्म से ही सुख मानती है तो उस सुखद धर्म में स्थित रहने से हम को भी सुख मिलेगा ।'' ऐसा सुनकर कन्या बोली "जो आदेश पिता दे उसी का मैं पालन करूँगी, और यही कुलीन कन्या का धर्म है। फिर उस कुरूप पुरुष को देखकर भी पूर्वभव के स्नेह के जागृत होने से उस पर वह स्नेहवाली हुई। वह भी उसी प्रकार स्नेहवान हुआ । कन्या ने शीघ्र उसका हाथ पकड़ा। उस समय तमासा देखने आये लोगों में से एक ज्योतिषी ने कुंडली बनायी तो वह आश्चर्य चकित हो गया। इस मुहूर्त का विवाहित वर चक्री और वधू राणी बनें ,पर यह विपरीत दीख रहा है। पुत्री के इस साहस से क्रोधित राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि 'इस वधू को वरराजा के अनुरूप वेष पहनाओ। कथीर के आभूषण पहनाओ ।' कन्या ने भी वैसा ही किया । भिल्ल ने कहा "राजन् ! आपकी पुत्री के योग्य मैं नहीं हूँ। गधे के