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कुवलयमाला-कथा रूपी अन्धकार से जिसका हृदय अन्ध बन गया है, वह प्राणी पास में बैठे हुए इस प्राणी की नाई अपने भाई और बहिन की भी हत्या कर डालता है।"
यह सुनकर राजा ने कहा “प्रभु! वह कौन सा आदमी है? कैसा है? उसने क्या किया है? हमें तो खबर ही नहीं।"
गुरुराज बोले- "यह जो तुम्हारे बाईं ओर और मेरे दाहिनी ओर बैठा हुआ है, महादेव के कण्ठ में रहे हुए कालकूट (विष) और कज्जल की तरह काला है, जिसके नेत्र चुंगची की तरह लाल-लाल हैं, भ्रकुटी के भङ्ग से जिसका चेहरा भयङ्कर लगता है, जिसके होठ क्रोध से भरे फड़क रहे हैं, जिसका सारा शरीर कड़े केशों से निष्ठुर जान पड़ता है और जो साक्षात् कोप मालूम पड़ता है, वह यहीं आया हुआ है। उसने क्रोध से परवश चित्त होकर जो काम किया है, सो सुनो"
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द्वितीय प्रस्ताव