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कुवलयमाला-कथा
वस्त्र पहने हुई थी और माङ्गलिक कण्ठसूत्र के आभूषण से ही शोभा पा रही थी । उसकी चाल राजहंसी जैसी थी । राजा ने उसे आते देखा। उसने आ ही राजा के दाहिने कान में धीरे-धीरे कुछ कहा त्यों ही राजा सिंहासन से उठकर प्रियङ्गुश्यामा के भवन की ओर चल दिये। रास्ते में राजा ने सोचा'सुमङ्गला कहती है नौकरों के नाना प्रकार से समझाने पर भी आज रानी ने न आभूषण पहने न भोजन ही किया । केवल असीम मौन धारण कर लिया है। भला, रानी के कोप का क्या कारण होगा? विचार कर देखूँ । स्त्रियों के कोप के कारण संभवत: पाँच होते हैं- एक तो प्रेम की शिथिलता, दूसरा गोत्र नाम का स्खलन, तीसरा चाकरों का अविनयी होना, चौथा सौत के साथ कलह होना और पाँचवाँ सासू के द्वारा तिरस्कार किया जाना । इनमें से पहले मेरे प्रेम में शिथिलता तो आई नहीं क्योंकि वह तो मेरे प्राणों की भी स्वामिनी है, फिर दूसरे की तो बात ही क्या ? दूसरे नाम की भी स्खलना नहीं हुई क्योंकि मैं रनवास की तमाम दासियों को भी उसी के नाम से पुकारता हूँ। तीसरा कारण भी नहीं हो सकता क्योंकि नौकर चाकर कदाचित् मेरी आज्ञा का उल्लङ्घन कर देवें पर रानी की आज्ञा भङ्ग नहीं कर सकते । सौतों की कलह भी कारण नहीं हो सकता क्योंकि रनवास की सभी स्त्रियाँ रानी को देवता के समान समझती हैं। रहा सासू के द्वारा तिरस्कार होना सो जब से मेरी माता-पिता के साथ अग्नि में प्रवेश करके देवी बन चुकी है तब से तिरस्कार होना संभव ही नहीं है । फिर क्या कारण होगा?' इस प्रकार सोचते - विचारते राजा देवी के निवास भवन में पहुँचे। वहाँ रानी न दिखाई पड़ी तो उसने दासी से पूछा “देवी कहाँ है?" दासी ने उत्तर दिया- "महाराज ! देवी कोपभवन में बैठी हैं।" राजा कोपभवन में गया। वहाँ उसने हाथी के द्वारा उखाड़ी हुई कमलिनी या टूटी हुई वनलता या निकाली हुई पुष्पमञ्जरी की तरह मुरझाई हुई रानी को देखा। राजा बहुत बारीक नजरों से देखता हुआ उसके पास पहुँचा। रानी भी अँगड़ाई लेती हुई अपने आसन से उठी और राजा को आसन दिया। राजा और रानी दोनों आसन पर बैठे । राजा ने कहा - " कुपित प्रिये ! शरद् ऋतु के मेघों द्वारा हत हुए कमल की तरह तुम्हारा मुख क्यों हो गया है? मुझे नहीं मालूम कि मुझसे या दूसरे किसी से कोई अपराध बन गया है। बन गया हो तो बताओ। क्या मैंने तुम्हारे भाई-बन्धुओं का सत्कार नहीं किया? तुम्हारे सेवक क्या विनीत नहीं हैं? तुम्हारी सौतें क्या तुम से विरुद्ध हो गई हैं? किस कारण तुमने कोप किया है?"
प्रथम प्रस्ताव