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कुवलयमाला-कथा पुत्र वैरिगुप्त को जानते हो?" उसने कहा - "भद्रे! तुम उन दोनों के नाम कैसे जानती हो?" उसने कहा - "वे दिन चले गए।" उसने कहा -"स्पष्ट कहो कि तुम उनकी क्या होती हो? उन दोनों को कैसे जानती हो? किस मार्ग से यहाँ प्राप्त हुई हो?" उसने कहा-"श्रावस्तीपुरी में सुरेन्द्र भूपति की पुत्री बाल्यकाल से ही उसके पिता के द्वारा वैरिगुप्त से विवाह करने को दी गयी हूँ मैं। इस बीच में उस विद्याधर से अपहृत करके यहाँ पाताल में डाल दी गयी हूँ। जानती हूँ उससे उस नाम वाली। केवल मैं ही अपहृत नहीं की गयी यहाँ और भी बहुतसारी महिलाएँ भी।" उसने विचार किया - 'अहो, मुझको ही यह चम्पकमाला दी गयी थी, तदनन्तर उस विद्याधर के द्वारा लायी गयी।' उसने कहा- "भद्रे! बताओ वह अधम विद्याधर कहाँ है? वह मेरे द्वारा कैसे मारा जाय? मैं वही वैरिगुप्त हूँ यदि मुझ पर महान् स्नेह है।" उसने कहा - "यदि आप वैरिगुप्त हो तो बहुत अच्छा हुआ।" उसने निवेदन किया -"कुमार! रहस्य सुनो जिससे पापी मारा जाय। इस देवायतन में इसका खेटक और सिद्धकृपाण रत्न है, उन्हें ले लो।" राजपुत्र ने कहा- "तो भद्रे! कहो कैसे वह विद्यासिद्ध है?" उसने कहा -"यह दिनपति सूर्य के अस्त हो जाने पर बहुत अन्धेरी रात में स्वेच्छा से परिभ्रमण करता है, महिला आदि जिस-जिस सार वस्तु को प्राप्त करता है, वह सब ले आता है। दिन में तो महिलावृन्द से घिरा हुआ यहीं रहता है तथा इसके इस कृपाण से और इस खेटक से समस्त कार्य सिद्धि है।" कुमार ने कहा -"अभी वह निर्दय चक्रवर्ती कहाँ है?" उसने कहा- "सदा ही सब स्त्रीजनों के बीच रहता है, अभी यदि वह है तो न मैं हूँ और न तुम।" उसने कहा -"यदि वह नहीं है तो वे कैसे गाती हैं?" तब उसने कहा - "भद्र! ये उसके बिना प्रमुदित हुई पढती हैं
और गाती हैं और फिर अन्य रोती हैं।" ___ कुमार ने कहा -"भद्रे! मेरे और उसके दोनों के बीच इनका हृदयङ्गम कौन भावी है?" मुस्कुराकर उसने कहा- "क्योंकि ये महिलाएं प्रेमी और शूर को भी त्याग देती हैं, कोई तो कातर और नि:स्नेह को भी ग्रहण कर लेती हैं।। ८६ ।। वायु से उड़ायी हुई ध्वनि की तरह और बिजली की तरह अस्थिर मनस्विनी महिलाओं के मन को कौन जान सकता है? ।। ८७ ।। तो भी मैं इतना जानती हूँ कि यदि ये आपको देख लेंगी तो अवश्य ही इनका तुम में अनुराग चतुर्थ प्रस्ताव