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कुवलयमाला-कथा सज्जनों को चाहिए कि वे दुर्जनों को दूर से ही दुतकार देवें, क्योंकि दुर्जन द्विधा=दोनों प्रकार से स्व अर्थात् धन और जीवन, देने पर भी दूसरों को दो कर देता करता ही है। खैर, सज्जन और दुर्जन दोनों ही अपने अपने कामों में लीन रहते हैं, अतः दोनों की चर्चा छोड़कर आत्मकल्याण के लिए संक्षेप से यह कथा कहता हूँ।
प्रथम प्रस्ताव