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________________ [ 142] कुवलयमाला-कथा देवनगरी के समान अवन्ति नाम की सुन्दर नगरी है। उसमें प्रजा के पालन करने में लालसा रखने वाला और प्रजा का प्रेम पूर्वक पालन करने वाला नल राजा के समान वत्स नाम का राजा राज्य करता था। यह आश्चर्य की बात थी कि उस राजा की प्रताप रूपी अग्नि शत्रु राजाओं के गजेन्द्रों के कपोलों से झरते हुए मद-जल का शोषण करके साथ ही साथ उन राजाओं की स्त्रियों के नेत्र जल के पूर की वृद्धि करती थी। उस राजा का एक उन्नत ज्ञान रूपी विभूति वाला तथा इन्द्र के समान पराक्रमी श्रीवर्धन नामक पुत्र था और श्रीमती नाम की एक कन्या थी। उस कन्या को विजयपुर के स्वामी विजय राजा के पुत्र सिंह के साथ ब्याह दिया था। जब सिंह कुमार युवावस्था में आया तो सदा अन्याय मार्ग में चलता था और कुमार्ग में द्रव्य का व्यय करता था। इस कारण राजा ने उसे देश निकाला दे दिया। सिंह कुमार अपनी पत्नी को लेकर पास के किसी गाँव में रहने लगा। इधर कुछ समय बाद श्रीवर्द्धन राजकुमार ने धर्मरुचि मुनि के पास चारित्र ले लिया और उनका शिष्य होकर कुछेक समय में समस्त शास्त्रों का अभ्यास कर लिया, इसके पश्चात् अकेले विहार की प्रतिमा को अङ्गीकार करके विहार करता-करता वहीं आया जहाँ उसके बहिन-बहनोई रहते थे। एक बार कृश शरीर वाले और तीव्र तप के भण्डार वे मुनि 'मासखमण' के पारणे के लिए अपनी बहिन के ही घर में गये। श्रीमती ने दूर से ही अपने भाई को आता देख विचार किया-'मालूम होता है मेरे भाई को किसी पाखण्डी ने बहका कर दीक्षा दे दी है।' ऐसा विचार कर चिरकाल से भाई के दर्शन में उत्सुक तथा स्नेह के भार से भरपूर हृदय वाली श्रीमती ने मुनि को गाढ़ आलिङ्गन किया। इसी समय उसका पति सिंह बाहर से आ रहा था। यह चेष्टा देखकर उसके चित्त में अत्यन्त क्रोध आया और उसने मुनि को मार डाला। यह देख उसकी पत्नी ने 'पापी ने मेरे भाई को मार डाला' ऐसा विचार कर अपने पति पर काठ के टुकड़े से प्रहार करके उसे मार डाला। सिंह ने मरते-मरते उसी काठ के टुकड़े से अपनी पत्नी का माथा फोड़ दिया। सिंह मरकर महामुनि के घात से उत्पन्न हुए पापों के कारण रत्नप्रभा पृथ्वी के रौरव नामक नरक में एक सागरोपम की स्थिति वाला नारकी हुआ। मुनि की बहिन श्रीमती भी भाई के मोह से मोहित हो रही थी और तत्काल क्रोध उत्पन्न होने से अपने पति की हत्या की थी, इन पाप कर्मों से पहले ही नरक के उसी तृतीय प्रस्ताव
SR No.022701
Book TitleKuvalaymala Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Narayan Shastri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages234
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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