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कुवलयमाला-कथा तोते ने ऐसा कहा तो, जिसके स्तन भय से काँप रहे थे ऐसी, उस युवति ने लज्जा के साथ, मुसाफिर से 'आइए पधारिये' कह कर पूछा- "आप कहाँ से आये और कहाँ जा रहे हैं?"
तोता भी बोला-"महाप्रभाव वाले महापुरुष! पधारिये। थोड़ी देर इस पत्तों के बिछौने पर विराजिये।"
कुमार उस बिछौने पर बैठ गया। फिर एणिका ने तरह-तरह के वृक्षों के पके मीठे सुगन्धित फल लाकर कुमार के पास रखे। कुमार ने सोचा-'यह स्त्री कौन होगी? और किस कारण से विरक्त होकर यहाँ तप कर रही होगी? यह कुछ समझ नहीं पड़ता। चलो इसी से पूछ लूँ।' यह सोचकर बोला-"भद्रे! तुम कौन हो? इस वन में आकर क्यों रहती हो? और इस तपस्या के लिए वैराग्य क्या कारण है? बतलाओ तो सही।"
कुमार ने ऐसा पूछा, मगर वह नीचा मुँह किये ही खड़ी रही, बोली कुछ भी नहीं। कुमार उसके उत्तर की राह देखता हुआ क्षणभर के लिए उद्विग्न हो गया। यह देखकर राजकीर बोला-" महाप्रभाव वाले कुमार! यह कन्या आपसे कुछ लजाती है। परन्तु आपकी प्रार्थना वृथा न हो, ऐसा ख्याल करके मैं ही इसका हाल आपको बतलाता हूँ। सुनिये
इस नर्मदा नदी के दक्षिण किनारे पर ही देवाटवी नामक एक बड़ा भारी जंगल है। उस जंगल में पत्तों के समूह से भरा हुआ सुन्दर घनी छाया वाला एक बड़ा बड़ का झाड़ है। उस पर सदा तोते वास करते हैं। उनमें सब तोतों का मुखिया एक मणिमय नाम का राजकीर रहता था। अनुक्रम से उसके, राजकीरिका (उसकी स्त्री) से देदीप्यमान इन्द्रनील मणि के समान पंखों से शोभित और मनोहर कान्ति वाला एक तोता उत्पन्न हुआ। एक बार की बात है कि भयङ्कर ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की किरणों से जिसका शरीर तप गया था
और जिसका गला तथा तलुवा प्यास से सूख गया था ऐसा, वह बाल-कीर किसी तमाल वृक्ष के नीचे जाकर क्षणभर बैठा। इतने में वहाँ एक व्याघ्र आया। उस व्याघ्र ने भय से भागते हुए राजकीर के बच्चे को जबरदस्ती से पकड़ कर पल्लीपति को भेंट कर दिया। उसने उसे राजकीर (कीरों तोतों का राजा) समझकर पींजरे में डाल लिया और पाल पोष कर बड़ा किया। महापुरुष! मैं
तृतीय प्रस्ताव