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कोई हाथी वाली ध्वजा, किसी के पास बिल्ली, साँप, मुर्गा वाली ध्वजा दिखाई देती है। किसी के हाथ में धनुष, किसी के खड्ग किसी के गोफण, किसी के मुद्गर, किसी के त्रिशूल, किसी के पधिरवाल, किसी के कुल्हाड़ी तथा किसी के हाथ में पाश सज्जित है। वे शत्रु सेना के सैनिकों का नाम लेते हैं कि मैं आज हाथ से "अमुक" को मारूँगा। रावण की सेना ने युद्ध क्षेत्र की पचास योजन भूमि को घेर लिया। इस प्रकार दोनो सेनाएँ आमने-सामने युद्धार्थ डट गईं। 394
(घ) युद्ध : (१) युद्ध का प्रथम दिवस : युद्ध आरंभ होते ही दोनो ओर के योद्धा भयंकर अस्त्र शस्त्रादि से वार करते हुए भिड़ गए। 395 युद्ध भूमि से जा-जा, ठहर-ठहर, डर मत, इस प्रकार की आवाजें आने लगीं। बाणों, चक्रों, गदाओं आदि से युद्ध भूमि भरने लगी। 36 आकाश में तलवारें एवं कटे मस्तक उछलने लगे। मुद्गरों से गिरते हुए हाथियों को देख गेड़ीदड़ा (गेंदबल्ला)का खेल याद आ रहा था। ओ वीरों के हाथ, पैर व मस्तक कटकट कर गिर रहे थे। वानर सेना उन्मत्त हो कर राक्षसों को परेशान करने लगी। राक्षस सेना के हस्त व प्रहस्त का वानर सेना के नल व नील ने सिर काट दिया।
हस्त, प्रहस्त को मरे देखकर राक्षसों ने सक्रोध वानरों पर भयंकर आक्रमण प्रारंभ किए। इन राक्षसों से आक्रोश, नंदन, दुहित, अनध, पुष्पास्त्र, विघ्नादि बंदर लोहा लेने लगे। मारीच राक्षस ने संताप को, नंद वानर ने ज्वर को, उद्दाम राक्षस ने विघ्न को, दुःखित बंदर ने शुक्र को,, सिंहध्वज राक्षस ने प्रथित को पछाड़ कर मार दिया। .
सूर्यास्त होने पर दोनों सेनाओं ने अपने मरे हुए एवं घायल सैनिकों की संभाल ली। रात्रि-विश्राम के पश्चात् दूसरे दिन पुनः युद्ध की योजना बनानी प्रारंभ कर दी। 398
(२) युद्ध का दूसरा दिन : प्रात:काल होते ही रावण युद्धभूमि में आया व राम के पराक्रमी सैनिकों से लड़ने लगा। कुछ ही समय में संपूर्ण युद्ध भूमि में पर्वतकार मरे हाथी, सिर से अलग हुए धड़ तथा खून की नदी दीखने लगी। रावण को क्रोध पूर्वक लड़ते देख सुग्रीव व हनुमान रणभूमि में कूद पड़े। हनुमान ने माली राक्षस को अस्त्र रहित कर "वज्रादर'' को मार दिया। 401 अब रावणपुत्र जंबूमाली हनुमान से आ भिड़ा। हनुमान ने मुद्गर प्रहार से उसे मूर्छित कर रथ, घोडे व सारथी को भी तहस-नहस कर दिया। क्रोधित हनुमान ने अपने चारों ओर के शत्रु राक्षसों को कुछ ही क्षण में नष्ट कर दिया। 402
_ अपनी सेना को कमजोर होता देखकर कुंभकर्ण बंदरों को मारने लगा। उसे देखते ही सुग्रीव, भामंडल. महेन्द्र, दधिमुख, अद आदि सभी ने
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