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है परंतु सिंहनी खेद नहीं करती। 13 हे माता। पितृ ऋण एवं वरदान की सिद्धि के लिए मैं वनगमन कर रहा हूँ। इस प्रकार अपराजिता को समझाकर अन्य माताओं को प्रणाम कर राम ने वन में प्रस्थान किया। 114
स्वयं के दीक्षा लेने एवं राम को राज्य देने तथा पुनः भरत को राज्य देने का निर्णय दशरथ लक्ष्मण को भी सुनाते हैं। 115 परंतु लक्ष्मण की इस पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं होती। परंतु जव राम व सीता जंगल के लिए प्रस्थान करते हैं तो लक्ष्मण का हृदय उद्वेलित हो उठता है। पिता की सरलता व माता कैकेयी की वक्रता को वे समझ लेते हैं । लक्ष्मण सोचते हैं, क्यों न मैं भरत के राज्य को हरण कर पुनः राम को देवैं। 116 पुनः सोचा अरे ! ऐसा ठीक नहीं। पिताजी को दुःख न हो, भरत राजा हो- "तातस्य मा स्म भुदुःखं राजास्तु भरतोडपि हि" यही ठीक है। अंत में लक्ष्मण ने निर्णय किया कि "अहं त्वनुगमिष्यामि राम-पादान्पदातिवत्" मैं तो सैनिक की तरह पैदल ही राम का अनुगमन करूँगा। 17 वे तुरंत दशरथ की आज्ञा लेकर माँ सुमित्रा के पास पहुँचे एवं कहने लगे- मैं राम का अनुसरण करूँगा क्योंकि आर्य राम के बिना में नहीं रह सकूँगा। 1 सुमित्रा ने लक्ष्मण को आज्ञा दे दी। लक्ष्मण प्रसन्न होकर बोले- हे माता। यह उत्तम कहा, उत्तम कहा "तदं साध्वम्ब, साध्वम्ब"। फिर अपराजिता के पास आज्ञा लेने पहुँचे। अपराजिता ने उन्हें रोकना चाहा पर लक्ष्मण उन्हें समझाकर, १ प्रणाम कर राम व सीता के पास पहुँचे। 120 धनुष-बाण लेकर राम के साथ लक्ष्मण ने भी वन में प्रस्थान किया।
सीता को जानकारी मिली कि पतिदेव राम वन हेतु प्रस्थान कर चुके हैं तब उन्होंने दूर से ही दशरथ को प्रणाम किया एवं अपराजिता से राम के साथ जाने हेतु आज्ञा माँगी। 121 अपराजिता ने सीता को समझाया कि तुम जन्म से ही उत्तम रीति से पली हो एवं प्यार युक्त रही हो, इस जंगल में पैदल चलना तुम्हारे लिए कठिन होगा। तुम्हारा कोमल शरीर जब गर्मी एवं भयंकर शीत को सहन नहीं कर सकेगा तो राम के लिए दुःख ही होगा। 122 अतः तुम्हें कष्ट से बचाने के लिए मैं वन जने की आज्ञा नहीं देती। "न निषेधं न चानुज्ञां यान्त्यास्ते कर्तुमुत्सहे"। परंतु सीता अपने निश्चय पर अडिग रही। 23 पुनः अपराजिता को प्रणाम कर राम का ध्यान करती हुई वन गमनार्थ रवाना हो गयी। अयोध्या के नर-नारियों ने उस महासती को कष्टपूर्वक जाते हुए देखा तो वे भी शोक से विह्वल हो गए। 124
(ग) अभिषेक संबंधी निर्णय एवं अपराजिता (कौशल्या ) व सुमित्रा : पिता की आज्ञा स्वीकार कर राम ने जब माँ कौशल्या को स्वयं के वन जाने व भरत को राजा बनाने के समाचार सुनाए तो राम के वन में जाने की कल्पना मात्र से अपराजिता मूर्छित हो गई। दासियों ने उसे चन्दनजलसिंचन कर सचेत किया। 125 होश आने पर अपराजिता कहने लगी-में राम के
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