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देशना सुनाई। 102 उन चार मुनियों ने दशरथ, भामंडल, सीता, जनक आदि का पूर्वभव सुनाया। संवेग प्राप्त दशरथ ने तुरंत दीक्षा लेने का विचार कर राम कां राज्यभार देने का निश्चय किया। 15 राजाने अपने मन की बात रानियों, पत्रों, मंत्रियों आदि सभी से कही। 104 वस्तुतः राम के राजतिलक की प्रेरणा का कारण कंचुकी के वृद्धत्व एवं मुनियों की देशना से दशरथ का प्रभावित होना था।
(ख) तिलक संबंधी निर्णय तथा राम, लक्ष्मण और सीता : कैकयी को ज्ञात हुआ कि राजा दीक्षा ले रहे हैं तथा राम का राजतिकल होने जा रहा है तो उसने तुरंत अपना पूर्व में प्राप्त वरदान राजा से माँगा जिनमें उसने भरत को राज्य देने की बात रखी। 15 राजा ने कैकेयी को मुँहगा वरदान दे दिया एवं राम, लक्ष्मण को बुलाकर कहा
अस्या सारथ्यतुष्टेन दत्तः पूर्व मया वरः ॥ सोड़यं भरतराज्येन कैकेय्या याचितोऽघुना ||
अर्थात् दशरथ ने राम, लक्ष्मण को समझाया कि युद्ध में सहायक हुई कैकेयी का अमानती वरदान उसने माँगा है। तदनुसार वह भरत के लिए ज्य माँगती है। यह सुनते ही राम प्रसन्न हुए एवं बोले कि पराक्रमी भरत के लिए राज्य की याचना अच्छा कार्य है। 107 राम कहते हैं- इस कार्य के लिए पिताजी द्वारा मुझे पूछना मेरी आत्मा को दु:खी करता है। परंतु यदि पित जी एक चारण को भी राज्य दें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। मेरे में वं भरत में कोई अंतर नहीं।
भरतो डप्यहमेवास्मि निर्विशेषाबभो तव। अतोड भिषिच्यतां राज्ये भरतः परया मुदा || 10
दशरथ राम के ऐसे शब्द सुनकर गद्गद हो गए एवं भरत का राज्याभिषेक करने हेतु आदेश दिया। परंतु भरत के आनाकानी करने पर गम ने उन्हें समझाया कि पितृ-वचन को सत्य करने हेतु तुम्हें राज्य को ग्रहण करना चाहिए "स्त्यापयितुं तातं स्वयं राज्ययुद्धह'। फिर भी भरत तैयार नहीं हुए तब राम ने सोचा, क्यों न मैं वन में चला जाऊँ। यह सोच राम दशरट से कहने लगे- भरतो मयि सत्यसौ, राज्यं नादास्यते तस्मादवासाययाम्यहम : वस्तुतः जैन रामायण में राम का बनगमन राम की स्वेच्छा से है किस के दबाव या आदेश से नहीं। फिर राम भरत को राज्याधिष्ठित करने के लिए दशरथ को प्रणाम कर धनुषबाण लेकर बनवास को रवाना हुए। 112
प्रस्थान से पूर्व अपराजिता को प्रणाम कर राम बोले- मैं पित की प्रतिज्ञा को सत्य करने हेतु वन में जा रहा हूँ "सत्यापयितुं सन्धां वन्यै राज्यमदात्पिता''। हे माता! भरत भी मेरी ही तरह तुम्हारा पुत्र है"मातार्यथाहं तनयों भरतोडपि तथैव ते।" हे माँ, मेरे वियोग में तुम कायः -त बनना अर्थात् धैर्य रखना। राम कहते हैं कि सिंह का पुत्र अकेला वन में ता
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