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________________ जैन रामायण की कथावस्तु उपोद्घात : साहित्यशास्त्रान्तर्गत विषयवस्तु के तीन प्रकार माने गए हैं। प्रथम-ऐतिहासिक या पौराणिक विषय वस्तु, द्वितीय-काल्पनिक विषय वस्तु तथा तृतीय-मिश्रित विषय वस्तु। विषय वस्तु को दो भागों में विभाजित किया गया है- १. आधिकारिक एवं २. प्रासंगिक। पुनश्च प्रासंगिक विषय वस्तु को दो भागों में विभाजित किया गया है-पताका एवं प्रकरी। कथानक, कथावस्तु, विषयवस्तु, वृन या वृत्तांत, इतिवृत्त, प्रतिपाद्य, कथा, कथावृत्त आदि सभी शब्द समानार्थी हैं। वृत्ति का मूल कथ्य उन शब्दों के शीर्षकान्तर्गत समाहित किया जाता है। ___ हेमचंद्र कृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व-७ ऐतिहासिक या पौराणिक कथावस्तु को लिए हुए हैं। जैन रामायण में हेमचंद्र ने भले ही कल्पना को समाविष्ट किया हो फिर भी हम उसे काल्पनिक या मिश्रित कथावस्तु की श्रेणी में नहीं रख सकते। इसका प्रमुख कारण यह है कि जैन रामायण का कथावृत्त भी प्रारंभ से अंत तक पौराणिक रामकथा की भावभूमि के इर्द गिर्द चक्कर काटता है। जैन रामायण में रामकथा आधिकारिक है जो अपने में अनेक अवान्तर कथाओं को समेटे हुए है। भांमडल-चंद्रगति विद्याधर कथा, वज्रकर्ण-सिंहोदर कथा. कल्याणमाला-वालिखिल्य, रूद्रभूति कथा, कपिलब्राह्मण कथा, अनंतवार्य कथा, जितपद्मा प्रकरण, रत्नकेशी- विद्याधर प्रकरण, मुनिसकलभूषण उपदेश कथा. आदि पताका एवं प्रकरी के रुप हैं। त्रिषष्ठिशलाकापुज्यचरित, पर्व-७ के लगभग ३००० श्रीकों में हेमचंद्र ने रामकथा को मविस्तार प्रस्तुत किया है जिसे प्रमुख शीर्षकान्तर्गत यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। 58
SR No.022699
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnuprasad Vaishnav
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2001
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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