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सिंहोदरोऽपि प्रत्यूचे मृत्यानां भरतोकपि हि। भक्तानामेव कुरुते प्रसादं नाऽन्यथा पुनः । 54 भूयो भू: भूयः प्रार्थये त्वामिदमेव जगद्विभो। भगवन् भूयसी मूयावा॑यि भक्तिर्भवे भवे। 55
मोक्ष : जैन धर्म एक प्रकार से सभी धर्माचायों, साधुओं यहाँ तक कि धर्मसंस्थापकों, तीर्थंकरों आदि के मोक्षमार्ग की व्याख्या करता है। मोक्ष अर्थात् मुक्ति। संसार के आवागमन से छूटकर परमात्मा के ज्योति स्वरुप में मिलने का नाम है मोक्ष। हेमचंद्र ने जैन रामायण में अनेक साधुओं, राजाओं आदि के मोक्षगमन का वर्णन किया है। मोक्ष के लिए तपश्चर्या आवश्यक है। तप का प्रतिफल है- मोक्ष। हेमचंद्र कहते हैं- जो लोग अरिहंतो की स्तुति करते हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।
'इति निर्वेदमापन्नः प्रावाजीत् सद्य एव सः । तपस्तीव्रतरं तप्त्वा सिद्धिक्षेत्रमियाम च। 56 नरेन्द्र आदित्व्यरजा वालिने बलशालिने। दत्त्वा राज्यं प्रवव्राज तपस्तप्त्वा ययो शिवम। 57 व्याघ्रयैवं खाद्यमानोऽपि शक्लध्यानमुपेयिवान। तत्कालोत्केवलो मोक्षं सुकोशल मुनिर्ययो। 58'
भक्ति के दो प्रकार हैं- सगुण तथा निर्गुण । सगुण भक्ति के अंतर्गत नाम-जप का विशेष महत्व है। महात्मा कहते हैं कि संपूर्ण संसार नाम से बंधा है। मूक चौपाये पशु भी जब मालिक से अपना नाम सुनते हैं, तो वशीभूत होकर आदेश का पालन करने लग जाते हैं। हेमचंद्र ने जैन रामायण में नामजप की महिमा का गुणगान किया है। उनके अनुसार सभी सिद्धियों को प्राप्त करने का मुख्य आधार है नाम-जप। जैन रामायण में मंत्रजप पर विशेष बल दिया गया है। ईश्वर का नामजप युगों-युगों के बंधन को काटने वाला है। हेमचंद्र ने मंत्रस्वरुप परमात्मा के नाम को बार-बार नमस्कार किया है।
श्री शातिनाथ भगवन् भवाऽम्मोनिधितारण। सर्वार्थसिद्धमंत्रा त्वन्नानेऽपि नमोनमः ।। 59 दशकोटि सहस्त्राणि जपो यस्य फलप्रदः। आरेभिरे ते जपितुं तं मन्त्रं षोडशाक्षरम् ॥ 60
स्वर्ग-नरक एवं कर्मफल : सांसारिक मानवों के कर्मफल हैस्वर्ग एवं नरक। समस्त जैन अरिहंतों, चक्रवर्तियों, वासुदेवों, प्रतिवासुदेवों आदि का मोक्ष या स्वर्ग-नरक में जाने का निर्णय जैन रामायण में प्राप्त होता है। हेमचंद्र ने राम, लक्ष्मण, दशरथ, रावण, हनुमान एवं अनेक राम-कथा पात्रों के कर्मफल पर भी विचार किया है। अशुद्ध कार्य करने वाले मरने के पश्चात् नरक में जाते है। नरक भी विभिन्न प्रकार के हैं। दुष्कर्मों के अनुसार
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