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जैन रामायण का दर्शन
दर्शन क्या है : अतिप्राचीन काल से ही उपनिषदों में तथा अन्यत्र "आत्मा वा अरे दृष्टव्यः, अर्थात् आत्मा ही दर्शन एवं साक्षात्कार का विषय है, यह सिद्धांत मान लिया गया है। भारतीय दर्शन के मूल में विशुद्ध अनुभूत स्वरूप परम सत्य का प्रकाश है।' दर्शन की व्याख्या भिन्न-भिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से की है। डॉ राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक इंडियन फिलोसफी में लिखा है- "दर्शन का कार्य जीवन को व्यवस्थित बनाना एवं कर्म का मार्ग प्रदर्शित करते रहना है" दर्शन जिन्दगी को समझने की एक कोशिश है। यह आवश्यक तथ्यों की जानकारी कर सुव्यवस्थित एवं विवेकशील दृष्टिकोण का निर्माता बनता है। यह कर्मद्वार को खोलता है तथा सत्यों को प्रकट करता है। सत्य के उद्घाटित होते ही मानव कर्मक्षेत्र में कूद पड़ता है। इसीलिए अरस्तू ने दर्शन को सत्य की विवेचना करने वाला कहा है। हम कौन है ? कहां से आए हैं ? यह विशाल संसार क्या है ? संसार से हमारा क्या संबंध है? अनुभव क्या है ? जीवन क्या है ? जीवन का उद्देश्य क्या है ? उद्देश्य की सिद्धि कैसे होती है ? ये सभी दर्शन के मौलिक प्रश्न है।
साधारणतः दर्शन का अर्थ है- तत्व साक्षात्कार, सभी दार्शनिक अपने साम्प्रदायिक दर्शनों को साक्षात्कार रूप ही मानते आए हैं। साक्षात्कार वह है जिसमें भ्रम या सन्देह को अवकाश न हो तथा साक्षात्कार किये गये तत्व में फिर मत भेद या विरोध न हो।
दर्शन का एक अर्थ और है-वह है- सबल प्रतीति। वाचक उमास्वाति के "तत्वार्थश्रद्धांन सम्पडदर्शनम्'' के अनुसार - प्रेमियों की श्रद्धा ही दर्शन है। दर्शन में कल्पना का भी समावेश होता हैं। कल्पनाओं का तथा
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