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आज तक अनुपलब्ध भी है। ये कृतियां निम्नलिखित हैं।
१. अनेकार्थ शेष २. द्वात्रिंवाद् द्वात्रिंशिका ३. निघंटु ४. प्रमाण मीमांसा का अवशिष्ट भाग ५. स्वोपज्ञवृत्ति का अवशिष्ट भाग ६. प्रमाणशास्त्र ७. आठवें अध्याय की लघुकृति ८. वृहन्यास का अवशिष्ट भाग ९. वादानुशासन १०. शेष संग्रह नाममाला ११. शेषसंग्रह नाममाला सारोद्धार १२. सप्तसंधान महाकाव्य135
तर्कप्रधान युग में जब तक उपर्युक्त सभी कृतियों पर विस्तृत अनुसंधान नहीं होता तब तक इन्हें प्रमाणिकता का दर्जा भी नहीं मिल सकेगा। तब तक ये कृतियां संदिग्धावस्था की सूची में ही शोभित होंगी। इनके बारे में मूल तथ्य तो यह है कि आज दिन तक ये अनुपलब्ध हैं अत: प्रधान कार्य तो इन कृतियों की खोज करना है। आज भी जैसलमेर, पाटण, खंभात आदि अनेक स्थानों के जैन भंडारों में हस्तलिखित कृतियां मौजूद हैं । खोज से अगर ये प्राप्त हो जाती हैं तो इन कृतियों को हेमचंद्र ने ज्ञानगौरव पर तौलकर सहज ही विवाद का समाधान किया जा सकता है। आवश्यकता है अनुसंधान कर उन कृतियों को शोधने की, जिसे भावी अनुसंधानकर्ता पूर्ण करेगें यह आशा है।
: संदर्भ-सूची: १. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, पं. शिवदत्त शर्मा, भाग-६, अंक ४-श्री हेमचंद्र. २. हेमचंद्राचार्य जीवन चरित - कस्तूरमल बांठिया, पृ.७ ३. आचार्य हेमचंद्र : डॉ. वि. भा. मूसलगांवकर, पृ. ५ ४. वही, पृ. ५. ५. प्रमाण मीमांसा : प्रस्तावना, जैन सिंधी ग्रंथमाला ६. आचार्य हेमचंद्र : डॉ. वि. भा. मूसलगांवकर, पृ. ५ ७. वही, पृ. ६ पर दी हुई सूची ८. हेमचंद्राचार्य जीवन चरित : डॉ. वूल्हर, अनुवाद - बांठिया, पृ. १० ९. प्रभावक चरित - प्रभाचंदसूरि-हेमसूरि, प्रबंध शोक, ११-१२ १०. मोढ नाम - अहिल्वाड़ा (पाटण) के दक्षिण में 'मोढेरा' से संबंधित है।
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