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होकर सुन्दर महाकाव्य पर आधारित व्याकरण सूत्रों को निर्देशित करना एवं गौणरुप से राजा कुमारपाल की यशवृद्धि करना रहा है। संस्कृत में जो स्थान भट्टिकाव्य का है प्राकृत में वही स्थान हेमचंद्र कृत द्वयाश्रय का है। परंतु भट्टिकाव्य से भी अधिक पूर्णता व क्रमबद्धता इस ग्रंथ में लक्षित होती है ।" इस काव्य में आठ सर्ग हैं। प्रथम छः सर्गों में अपभ्रंश के उदाहरण हैं । महाकाव्य की कथावस्तु अत्यंत संक्षिप्त है । काव्य में कथा विस्तार की दृष्टि से यत्र-तत्र ऋतुवर्णन, चंद्रोदय वर्णन एवं ऋतुओं में सम्पन्न होने वाली विभिन्न क्रीड़ाओं का वर्णन किया है। डॉ. मुलसगाँवकर ने इसकी कथावस्तु पर प्रहार करते हुए लिखा है ." इतना ही कहा जा सकता है कि इस महाकाव्य की कथावस्तु का आयाम बहुत छोटा है। एक अहोरात्र की घटनाएँ इसे संचार करने की पूर्ण क्षमता नही रखती हैं । """"
संक्षेप में इसके प्रथम सर्ग में ९० गाथाएँ, जिसमें कुमारपाल की प्रातः कालीन पूजा का वर्णन है । द्वितीय सर्ग में ९१ गाथाएं, जिसमें राजा का व्यायाम, गजारुढ़ होना, मंदिर जाना, पुनः महलों में आगमनादि वर्णन हैं । तृतीय सर्ग में ९० गाथाएं, राजा के उद्यान गमन व वसंतोत्सव का वर्णन है । चतुर्थ सर्ग में ७८ गाथाएं, जिसमें गीष्म ऋतु का वर्णन है। पंचम सर्ग में १०६ गाथाएं, इस सर्ग में शरद, हेमंत, शिशिर वर्णन व संध्या - रात्रि आदि का वर्णन है । षष्टम सर्ग में १०७ गाथाएं, चंद्रोदय वर्णन, कोंकण पर विजय, राजा के शयनादि का वर्णन है । सर्ग सप्तम में १०२ गाथाएं, जिसमें राजा के परामर्श व चिंतन का वर्णन है । अंतिम सर्ग की ८३ गाथाओं में श्रुति देवी का उपदेश देना व उसके अदृश्य होने का वर्णन है। इस प्रकार ७४७ गाथा छंदों का यह महाकाव्य है । प्रथम छः सर्गों की भाषा प्राकृत तथा सातवें एवं आठवें सर्ग की क्रमशः सौरसैनी एवं मागधी है। इनके साथ-साथ 2 पैशाची, चूलिका आदि का भी प्रयोग हुआ है। इस तरह यह ग्रंथ भी हेमचंद्र की महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है।
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित : बारहवीं शताब्दी में हेमचंद्राचार्य ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित नामक पुराण काव्य की रचना की। गुर्जर नरेश कुमारपाल की प्रार्थना पर लिखा यह ग्रंथ ई. सन् १९६० के मध्य पूर्ण हुआ । तिरसठ महापुरुषों के चरित की गाथायुक्त यह ग्रंथ दस पर्वों में विभक्त है। जैकोबी लिखते हैं
"Hemachandra on the other hand writing in Sanskrit, in Kavya Style and fluent verses, has produced an epical poem of great length (some 3700 verses ) Intended as if were as a Jaina Substitute for the great epics of the Brahmans.
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में ३६०० श्लोक हैं। इस ग्रंथ की रचना योगशास्त्र के बाद हुई । कुमारपाल ने हेमचंद्र से प्रार्थना की कि
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