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कुमारपालचरित की रचना प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचंद्र सूरि ने की थी। इसमें सिद्धराज जयसिंह एवं कुमारपाल का इतिहास है। इसकी रचना सं. १२१८ और १२२९ के बीच किसी समय हुई। न तो हेमचंद्र राजपूताना के कवि थे और न ही कुमारपाल बौद्ध थे। हेमचंद्र गुजरात के थे एवं कुमारपाल शैव थे। वे आगे लिखते हैं-इन्होंने १०८८-११७२ ई. में शासन किया। प्रसिद्ध हेमचंद्र इन्हीं के दरबार में थे।" जॉर्ज ग्रियर्सन के विवरणानुसार कुमारपाल व हेमचंद्र का समय ठीक ही बैठता है।
सिद्धराज जयसिंह के पश्चात् इनका पौत्र कुमारपाल गुजरात के राजसिंहासन पर आसीन हुआ। हेमचंद्र के धार्मिक उत्साह एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व ने इस चालुक्य राजा को शैव से जैन बना दिया। डॉ. वूलर का मत है कि हेमचंद्र कुमारपाल को शैव मत से एकदम विमुख नहीं कर सके थे। परंतु उन्हें आवश्यक जैन व्रतों को पालने वाला तो बना ही दिया था।
कमारपाल वि. सं. ११९९ के मार्गशीर्ष कष्णा चतर्दशी को राज्याभिषिक्त हुए। यह हेमचंद्र के आशीर्वाद का ही परिणाम था। राजा बनने पर कुमारपाल की आयु ५० वर्ष की थी, कुमारपाल के राज्याभिषिक्त होते ही हेमचंद्र पाटन आये एवं चमत्कार द्वारा कुमारपाल को स्मरण कराया। स्मरण होते ही कुमारपाल ने हेमचंद्र का स्वागतादि कर कहा-लीजिए, अब आप अपना राज्य सम्हालिए। हेमचंद्र बोले-अगर प्रति' उपकार की भावना है तो जैन धर्म स्वीकार कर उसका प्रसार करें । कुमारपाल ने हेमचंद्र के आदेश को शिरोधार्य कर राज्य में प्राणिवध, मांसाहार, असत्य भाषण, द्यूत, व्यसन, वेस्यागमन. पर-धनहरण एवं मद्यपान आदि का निषेध किया।
___ कुमारपाल व हेमचंद्र के मिलन के समय एवं घटनाओं के संबंध में महावीरचरित, लाइफ ऑफ हेमचंद्र, काव्यानुशासन की भूमिका, कुमारपाल प्रतिबोध, प्रभावकचरित आदि में अलग-अलग मत दिये गये हैं। श्री ईश्वरलाल जैन के अनुसार कुमारपाल ने मार्गशीर्ष शक्ला द्वादशी. सं. १२१६ को श्रावक धर्म के १२ व्रत स्वीकार कर विधिपूर्वक जैन धर्म में दीक्षाग्रहण की। दादशवत-अणुव्रत-५, गुणव्रत-३, शिक्षाव्रत-४ आदि में इस बात की पुष्टि होती है। अधिकतर प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि कुमारपाल शैव ही रहा। हो सकता है कि जीवन की उत्तरावस्था में वह द्वादशव्रतधारी श्रावक जैसा हो गया हो। 35
राजा कुमारपाल ने हेमचंद्र की प्रेरणा से तालाब, विहार, धर्मशालाएँ, दीक्षाविहार, मंदिर, शिखर आदि बनवाए। उन्होंने केदार व सोमनाथ का उद्धार किया। सात बड़ी यात्राएं कर नौ लाख रत्न पूजा में चढ़ाए। कुमारपाल की प्रार्थना पर हेमचंद्र ने 'योगशास्त्र' वीतरागस्तुति एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पुराण की रचना की। हेमचंद्र के द्वारा रचित काव्यादि को लेखबद्ध करने हेतु
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