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डॉ. वूलर इस बात को अस्वीकार करते हैं कि हेमचंद्र की दीक्षा पाँच वर्ष की उम्र में हुई। 'लाइफ ऑफ हेमचंद्र' में वूलर ने प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि पाँच वर्ष में दीक्षा होना विश्वास के योग्य नहीं है।"
दीक्षा लेने के बाद हेमचंद्र ने अपना समय अध्ययन में लगाया। विद्यार्जन के अंतर्गत उन्होंने न्याय, तर्क एवं व्याकरण के साथ-साथ काव्य का भी ज्ञान प्राप्त किया। तर्क, लक्षण व साहित्य उस युग की महाविधाएं कहलाती थीं। इस महत्त्रयी का पाणिडत्य राजदरबार व जनसमाज में कीर्ति उपलब्ध करने हेतु अनिवार्य था। सोमचंद का तीनों विद्याओं पर अधिकार होने लगा। सोमचंद की शिक्षा का प्रबंध स्तम्भ- तीर्थ में उदयन के घर हुआ। प्रो. पारीख लिखते हैं- उन्होंने व्यावहारिक ज्ञान की अभिवृद्धि की। प्रभावकचरित के अनुसार उन्होने (सोमचंद के गुरु ने) सात वर्ष, आठ मास परिभ्रमण व चार माह सद्गृहस्थ के यहां बिताये। उनका शिष्य सोमचंद उनके साथ था अतः अल्पायु में ही विद्या-निपुण बन गया।
डॉ. नेमीचंद शास्त्री लिखते हैं कि हेमचंद्र नागपुर (नागौर मारवाड़) में "धनद" सेठ के यहाँ व अपने गुरु के साथ गौड़ प्रदेश में खिल्लर गाँव व कश्मीर में भी गये थे।' इक्कीस वर्ष की अवस्था तक उन्होंने समस्त शास्त्रों को टटोल लिया। इन सभी आधार ग्रंथों के निष्कर्ष पर हम कह सकते है कि हेमचंद्र की शिक्षा १६६६ में पूर्ण हो गयी तथा इसी वर्ष उन्हें सूरि अर्थात् आचार्य पद भी मिल गया। इस नवीन आचार्य को विद्वत्ता, तेज, प्रभावादि गुणों से युक्त देखकर दर्शक इनकी और होने लगे। सोमचंद्र जब हेमचंद्रसूरि बन गये तब इनकी माता पाहिनी ने भी दीक्षा ग्रहण की।
आचार्य हेमचंद्र के गुरु के संबंध में साहित्यकार अस्पष्ट हैं। डॉ. जी. वूलर का मत है कि उन्होंने अपने गुरु का नामोल्लेख किसी भी कृति में नहीं किया। शायद वूलर हेमचंद्र के समस्त ग्रंथों का अध्ययन न कर पाए हों। प्रभावकचरित व कुमारपालचरित के अनुसार इनके गुरु देवेन्द्रसूरि ही थे। बिंटरनिज ने अभयदेवसूरि को इनका गुरु बताया। प्रबंधचिंतामणि के अनुसार गुरु व शिष्य में मनमुटाव अवश्य रहा होगा। वरना वे अपनी कृतियों में गुरु का उल्लेख अवश्य करते।
प्रभावकचरित से ज्ञात होता है कि उन्होंने ब्राह्मीदेवी की उपासना के लिये कश्मीर की यात्रा की एवं कश्मीरी पंडितों से अध्ययन किया था। यह बात संभव भी हो सकती है क्योंकि अभिनवगुप्त, मम्मट, रुद्रट आदि पंडितों ने कश्मीर में जन्म लिया था जिनकी महिमा से हेमचंद्र भी वहां पहुँच कर ज्ञान प्राप्त करना चाहते हों। आचार्य सोमप्रभ के अनुसार हेमचंद्र ने परोपकार के लिये विविध देशों में विहार किया। गुरुदेव के बाद में निषेध करने पर इन्होंने गुर्जर देश के अहिल्वाडा (पाटननगर) में स्थिर होकर अपनी ज्ञान
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