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हैं. देश को सांप्रदायिकता के कीचड़ से ऊपर उठाना चाहते हैं, नैतिक मूल्यों की ठोस पुर्नस्थापना चाहते हैं एवं रामराज्य की स्थापना करना चाहते हैं तो हमें सर्वप्रथम राम के चरित्र को सर्वोपरि महत्ता देकर उसके सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाना होगा। ये आदर्श एवं सांस्कृतिक मूल्य भावी लोककल्याण के अमोघ अस्त्र होंगे। चाहे वाल्मीकि रामायण हो, दशरथ जातक हो या जैन रामायण हो, सभी में अत्याधुनिक युगीन मानव के चरित्र को ऊपर उठाने की क्षमता मौजूद है। आज रामकथा का स्थान हिन्दुस्थान में ही नहीं संपूर्ण विश्व में अत्यंत महत्वपूर्ण है। रामकथा में आदर्श गृहस्थ जीवन, आदर्श राजा, धर्म, आदर्श पारिवारिक जीवन. आदर्श पातिव्रत धर्म एवं आदर्श मातृप्रेम के साथसाथ सर्वोच्च भक्ति ज्ञान, त्याग, वैराग्य तथा सदाचार की शिक्षा कृट-कृट कर भरी हुई है। भक्ति, ज्ञान, नीति व सदाचार का जितना प्रचार-प्रसार रामकथा से जन-जन में हुआ उतना कदाचित् विश्व के किसी अन्य महापुरुष की कथा से हुआ होगा। विभिन्न रामकथाओं में कुछ प्रसंग वैभिन्य मिलता है। कथानक में नव्योद्भावना की एक प्रेरणा पुनरुत्थानवादी चेतना से भी मिली है, जिसमें रामकथा को अनार्य संस्कृति पर आर्य संस्कृति की विजय के रुप में अंकित किया गया है। इस दृष्टि से रामकथा भले ही किसी भी परंपरा में हो, वह आज के लिये प्रासंगिक है।
रामकथा की महत्ता पर डॉ. फादर कामिल बुल्के ने लिखा है"लोकसंग्रह का भाव एक प्रकार से रामकथा का सर्वस्व है। अत्यंत विस्तृत रामकथा साहित्य में कथावस्तु का पर्याप्त मात्रा में परिवर्तन तथा परिवहन हुआ है किंतु सीता का पातिव्रत्य, राम का आज्ञापालन, भरत व लक्ष्मण का मातृप्रेम, दशरथ की सत्यसंघता, कौशल्या का वात्सल्य आदि जीते जागते आदर्शों के कल्याणकारी प्रभाव की जितनी प्रशंसा की जाए थोड़ी है। इस प्रकार रामकथा आदर्श जीवन का दर्पण है जिसे भारतीय प्रतिभाएँ शताब्दियों से परिष्कृत करती चली आ रही हैं।"
इस प्रकार पतनोन्मुख युग में मर्यादा पुरुषोतम राम का चरित्र आदर्श एवं मात्र इस पतन के बचाव का साधन है। आवश्यकता है उसे अपनाकर अपने जीवन को परजनहिताय बनाने की। हेमचंद्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व ७ (जैन रामायण) राम के इन आदर्शों के प्रचार-प्रसार की महत्वपूर्ण सामग्री होने से स्वयं हेमचंद्र तथा यह ग्रंथ स्वतंत्र व महान व्यक्तित्व के जन्मदाता कहे जा सकते हैं। ऐसे ही ग्रंथों के अध्ययन से भावी राम जन्म लेंगे तथा वर्तमान जनमन राम के आदर्श चरित्र को ग्रहण करेगा।
अतः हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में संस्कृत का जैन रामायण ग्रंथ असाधारण योगदान कर रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि रामकथात्मक ऐसे काव्य भारतीय संस्कृति की परंपराओं को युगीन संदर्भो के स्तर पर
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