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लक्ष्मण-रावण युद्ध, शत्रुघ्र - मधु युद्ध, लवणांकुश - पृथु युद्ध, लवणांकुश - राम युद्ध आदि ।
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युद्धों के सजीव वर्णनों में हेमचंद्र ने जो वीर रस की धारा बहाई है उससे पाठक सहज ही रसासिक्त हो जाते हैं। लक्ष्मण व रावण के भयंकर युद्ध का वर्णन देखिए :
विधूया ऽ शेषरक्षांसि तूलानीव महाबलः । लक्ष्मक्षस्ताडयामास विशिखैर्दशकंधरम् ॥ भूमौ नभसि पृष्ठेऽग्रे पार्श्वयोरपि लक्ष्मणः ॥ अपश्यद्रावणानेव विविधायुधवर्षिणः ॥ रोषारूणाक्षस्तच्चक्रं भ्रमयित्वा नभस्तले । मुमोच रावणः शस्त्रमन्त्यं रामाड नुजत्मने ॥ कृत्वा प्रदक्षिणां तत्तुं सो मित्रेर्दक्षिणे करे | अवतस्थे रविरिवोदयपर्वतू मूर्धनि ॥ इति दर्पाद्विब्रुवतो रक्षोनाथस्य लक्ष्मणः । वक्षस्तेनैव चक्रेका कूष्माण्डवद्पाटयत् ॥"
भयानक : अन्य रसों की भांति " भयानक" की अभिव्यक्ति भी त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पर्व - ७, में हुई है । यथा - १. रावण की तपस्या में अनादृत देवता का उपसर्ग, २. कुलभूषण एवं मुनि का उपसर्ग, ३. अंजना का वनभ्रमण करते हुए सिंह को देखने का प्रसंग, ४. लंका में सीता के समक्ष भूत-प्रेतों का प्रकट होना, ५. धोर नरकों की यातनाओं का वर्णन आदि सभी को भयानक रस के उदाहरणों में गिना जा सकता है। "
जब सीता को क्रीड़ा के लिए रिझाने में रावण असफल हो गया तब उसने एक रात्रि को सीता के समक्ष भूत-पिशाच-प्रेत- वेताल आदि प्रकट किए. धूष्कारिणो महाधूकाः फेत्कुर्वाणा:श्च फेखः। वृका विचित्रं क्रन्दन्त ओतवोऽन्योऽन्ययोधिनः ॥ पुच्छाच्छोटत्कृतो व्याघ्राः फुत्कुर्वाणा : फणाभृत: ॥ पिशाचप्रेतवेतालभूताश्चाकृष्टकर्त्रिका |
उल्ललन्तो दुर्ललिता यमस्येव सभासदः ॥ विकृता रावणेनेयुरुपसीतं भयंकराः ॥
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वीभत्स : पूर्व में हम वीररसान्तर्गत युद्धों के वर्णनों में हेमचंद्र की कला पर दृष्टिपात कर चुके हैं । प्रत्येक युद्ध के पश्चात् युद्ध मैदान " विभत्स " का महासागर बन जाता है । युद्धस्थल की वीभत्सता के साथ-साथ जैन रामायण में ऐसे अनेक वर्णन प्रस्तुत किए हैं, यथा, रावण की सेना के वीर हाथियों, ऊँटों, खरों, सिंहों, मेषों, घोड़े आदि पर सवार होकर युद्ध भूमि में पहुँचे तथा रावण के चारों ओर घेरा बनाकर वे शत्रुओं से लड़ने लगे :
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