________________
लिए अत्यंत आवश्यकता है। रामकथात्मक आदर्श कलियुगी डूबते मानव की पतवार है। . यह पुस्तक शोध-ग्रंथ से संशोधित (संक्षिप्त) हेमचंद्र की कृति जैन रामायण को सरल भाषा में जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास है। मूल शोध-ग्रंथ हेमचन्द्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (जैन रामायण) एवं तुलसी के मानस का तुलनात्मक अध्ययन' शीघ्र प्रकाशित होगा ऐसा मेरा विश्वास है। विद्यार्थियों तथा पाठकों की सुविधा के लिए मैंने इसे अलग पुस्तकाकार प्रदान करने का प्रयत्न किया है।
शोध-प्रबंध के मार्गदर्शक परमादरणीय डॉ. हरीश गजानन शुक्ल (निवृत्त आचार्य, आर्ट्स एवं सायंस कॉलेज, पाटण) के प्रति मै नतमस्तक हूँ जिनके सफल मार्गदर्शन एवं आत्मिक स्नेह के कारण मुझे सफलता प्राप्त हुई। डॉ. नरसिंह गजानन साठे (निवृत्त प्रोफेसर, पूना विश्वविद्यालय), श्री रमानाथ त्रिपाठी (रीडर, दिल्ली विश्वविद्यालय), डॉ. रामचरण महेन्द्र (कोटा) तथा पूज्य मुनि श्री कीर्तिरत्न विजयजी ने समय-समय पर मेरा मार्ग प्रशस्त किया, एतदर्श मैं आप सभी के प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ।
डॉ. हुसेन खाँ शेख (प्रधानाचार्य), श्री कोजाराम बिश्नोई (उप जिल्ला शिक्षाधिकारी), श्री रतनलालजी परमार (निवृत्त उपाचार्य), श्री पूनमचंदजी जैन (निवृत्त उपाचार्य) एवं श्री कल्याणसिंह चौहान (पुस्तकालयाध्यक्ष) जैसे आत्मिकों ने मुझे आत्मविश्वास व उत्साह से भरा-भरा रखा अतः मैं आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ।
इस कार्य में मेरे सखा-भातृ जावतसिंह राव का व्यक्तिगत सहयोग मात्र अनुभवजन्य है। ईश्वर यही भाव बनायें रखे ऐसी प्रार्थना है। अग्रज श्री राधेश्यामजी के प्रति नमन करता हूँ जिन्होंने स्वयं पारिवारिक झंझावतों को झेलकर मुझे प्रेरणा व प्यार दिया। अनुज ओम, जो मेरी हर सफलता पर मौन मुष्कान बिखेरता हुआ मुझ में प्रेरणा सींचन करता रहा उसे भुलाया नहीं जा सकता।
अंत में शांति प्रकाशन के संचालक भाई श्री तेजपाल जी,कु. संगीता आर. भोगले एवं कु. आशा एस. दातनिया के सहयोग के कारण यह रचना पाठकों के हाथों में है, मैं इनका आभार मानता हूँ। मुझे विश्वास है कि मेरा यह लघु प्रयास हिन्दी रामकथात्मक साहित्य के अध्ययन में नई दिशाएँ उद्घाटित करेगा।
अंबाजी
डॉ. विष्णुदास वैष्णव अध्यक्ष, हिन्दी विभाग (स्नातक, स्नातकोत्तर) श्री अंबाजी आर्टस् कॉलेज अंबाजी (उ. गुज.)