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निवेदन
'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (जैन रामायण) और मानस का तुलनात्मक अध्ययन' शोध प्रबंध की स्वीकृति पर उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय ने १९९२ में मुझे पीएच.डी. की उपाधि प्रदान करने के साथ-साथ इस विश्वविद्यालय के प्रथम शोध-छात्र होने का गौरव भी दिया। शोध-ग्रंथ की आत्मा "जैन रामायण' को लोकाभिमुख बनाने के लिए मैने 'हेमचंद्र एवं उनका त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित "जैन रामायण' पुस्तकाकार रुप में प्रस्तुत किया है। कृति में उत्तर गुजरात के प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचंद्र के जीवन-वृत के साथ-साथ उनका संपूर्ण कृतित्व विस्तारपूर्वक स्पष्ट किया गया है। .
हेमचंद्राचार्य की कृतियों में जैन रामायण (संस्कृत) का विशेष महत्त्व है। ब्राह्मण परंपरा के रामकथा-काव्यों में जो स्थान मानस का है, वही स्थान श्रमण परंपरा के रामकथा-काव्यों में हेमचंद्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (जैन रामायण) पर्व 7 का है। हेमचंद्र के पूर्व की जैन रामकथा परंपरा में जिनसेनकृत आदिपुराण, गुणभद्रकृत उत्तरपुराण, पुष्पदंतकृत महापुराण, जिनदासकृत रामायण, पद्मसेन विजयगणिकृत रामचरित, सोमसेनकृत रामचरित तथा हरिषेणकृत कथाकोष प्रकरण प्रमुख ग्रंथों की श्रेणी में आते हैं। विमलसूरि (पउमचारिउ), रविणेश (पद्मपुराण) तथा स्वयंभू (रामायण) में भी इसी परंपरा को विकसित किया है। . अनेक जैन कवियों की रामकथात्मक रचनाओं के बीच हेमचंद्रकृत जैन रामायण अलग छवि लिए हुए है। आज जैन साधु अपने मुमुक्षुओं को जिस रामकथा का पान करवाते हैं, वह है हेमचंद्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुष पर्व ७ अर्थात् जैन रामायण।
ग्रंथ में जैन रामकाव्य परंपरा, हेमचंद्राचार्य का व्यक्तित्व एवं कृतित्व, जैन दर्शन, वस्तु वर्णन, कलापक्ष एवं जैन रामायण की नवीन उद्भावनाओं को उद्घाटित किया गया है। कृति के अध्याय छ: का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसमें ऐसे प्रसंगों की विवेचना है जो प्रसंग ब्राह्मण रामकथा परंपरा से जैन रामकथा परंपरा को अलग साबित करते हैं। जैन रामकथात्मक के भव्य प्रसंग अजैन पाठकों को आश्चर्य में डालते हुए नये चिंतन व नयी शोध के लिए प्रेरित करते हैं। इन नव प्रसंगों की जानकारी ब्राह्मण परंपरानुगामी पाठकों के लिए कृति के आकर्षण का कारण बनेगी। संस्कृत भाषा के इस हेमचंद्रकृत ग्रंथ पर हिन्दी. भाषा में कोई शोध कार्य अब तक प्राप्त नहीं है, ऐसा मेरा विश्वास व विद्वानों का मंतव्य है।
मैने अंतिम अध्याय में, वर्तमान समय में रामद्वारा प्रस्थापित आदर्शों की आवश्यकता पर बल दिया है। रामकथा किसी भी भाषा या परंपरा में क्यों न हो, उसमें निहित आदर्शों की वर्तमान भटके मानव के चरित्र को उज्जवल बनाने के