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प्रस्थान किया। रास्ते में वे लोकपुर, लंपाक, विजयस्थली को जीतते हुए आगे बढ़े। आगे इन्होंने रुण, कालांशु, नंदिवंदन, सिंहल, गलभ, नल, भीम, भृधरवादि राजाओं को पराजित किया। अनेक राजाओं को जीतकर वे पुनः पुंडरीकपुर आए तथा महोत्सव का आयोजन किया। लवणांकुश की विजय पर सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया। अब लवण व अंकुश ने जीते हुए राजाओं समंत अयोध्या जाकर राम के पराक्रम की परीक्षा लेने की आज्ञा वज्राजंध से माँगी, तब सीता ने अपने पुत्रों से कहा कि तुम अपने पिता से नम्रता पूर्व मिलना। अव लवणांकुश भारी सेना लेकर दिशाओं को गेंदते हुए अयोध्या के समीप पहुँचे। राम-लक्ष्मणादि को सेना की जानकारी मिलते ही सुग्रीवादि को लेकर युद्ध करने के लिए चल पड़े। भामंडल सीता को विमान में बिठाकर लवणांकुश की छावनी में ले आया एवं उसने लवणांकुश में अपने पिता राम एवं लक्ष्मण से युद्ध न करने की सलाह दी। 479
फिर भी देखते ही देखते दोनों सेनाओं में युद्ध आरंभ हो गया। थोड़े ही समय में लवणांकुश ने राम की सेना को परास्त कर दिया। * राम इन छोटे-छोटे बालकों की वीरता को देख अचंभित हुए एवं सोचने लगे कि ये किसके पुत्र होंगे। 481 अब कृतांतवदन राम की आज्ञा से उनके रथ को लवणांकुश के सामने लाया, परंतु बोला, हे स्वामी, शत्रु के बाणों से रथ जर्जर हो रहा है, अश्व आगे नहीं बढ़ रहे हैं, मेरी भुजाएँ भी चाबुक मारने में असमर्थ हो गई हैं। राम बोले, तुम सत्य कह रहे हो, क्योंकि आज तो मेरे यह वज्रावर्त धनुष, मुशल, रत्न एवं हल रत्न भी बेकार साबित हो रहे हैं । 482 तभी युद्ध भूमि में अंकुश के बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए। संज्ञा प्राप्त कर लक्ष्मण ने चक्र को अंकुश पर छोड़ा परंतु वह तो अंकुश की प्रदक्षिणा कर पुनः लक्ष्मण के हाथ में आ गया। 483
उसी समय नारद ने आकर राम व लक्ष्मण को कहा कि ये तुम्हारे ही पुत्र है। नारद ने उनसे सीता त्याग से वर्तमान तक का संपूर्ण वृत्तांत कहा। लवणांकुश ने राम-लक्ष्मण के चरण स्पर्श किए। राम ने उन्हें गोद में बिठाकर चुम्बन किया। लक्ष्मण ने दोनों का आलिंगन किया। पुत्रों को प्राप्त कर राम अति सुखी हुए। अब सीता पुनः पुंडरीकपुर चली गई एवं पुत्रों सहित राम विमान से अयोध्या गए जहाँ महोत्सव आयोजित किया।
(ड) सीता का अग्नि दिव्य : लवणांकुश के अयोध्या आ जाने के पश्चात् लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण, हनुमान, अंगदादि ने सीता को अयोध्या लाने हेतु राम से आज्ञा माँगी। राम बोले कि "लोकापवाद को मिटाने हेतु सीता लोगों के सामने कुछ दिव्य करे तो यह संभव हो मंगा"। राम की आज्ञा लेकर सुग्रीव पुंडरीकपुर पहुचे एवं सीता को विमान में बिठाकर अयोध्या की तरफ प्रस्थान किया। इधर राम ने नार के कहर एक ऊँचा मंच
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