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हुई सीता मृर्छित हो गई एवं पुनः बोली. राम का कल्याण हो। लक्ष्मण को आशीष कहना। हे वत्स, अब तुम जाओ। तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी हो।
कृतांतवदन ने सीता को प्रणाम किया एवं अयोध्या को चल दिया। 473
(ग) लवण एवं अंकुश का विवाह : वन में विचरण करती हुई सीता ने सेना को अपनी ओर आते देखकर अपने समस्त गहने उतार लिए एवं सेना के राजा के सामने रखकर वह स्थिर हो गई। राजा ने सीता के आभूषण उसे लौटा दिए एवं पूछा- हे देवी, तुम कौन हो? किसने तुम्हारा त्याग किया है ? मैं तुम्हारे दुःख से दुःखी हूँ। मंत्री द्वारा पुंडरीक नगर के राजा वज्राजध का परिचय पाकर सीता ने राजा को अपना संपूर्ण वृत्तांत सनाया। वज्राजंध बोला-तुम मेरी धर्म की बहन हो। मेरे घर चलो। राम पश्चात्ताप कर शीघ्र ही तुम्हारी खोज करेंगे। तब शिविरका में आरुढ़ हो सीता पुंडरीकपुर में आई। धर्मपरायणतायुक्त वह वज्राजंध के घर में अलग से रही। 474 उधर कृतांतवदन ने अयोध्या पहुँचकर सीता द्वारा दिया गया संदेश राम को सुनाया। राम सीता का संदेश सुनकर मूर्छित हो गए। लक्ष्मण ने चंदन जल सिंचन कर उन्हें सचेत किया तब वे पुनः विलाप करने लगे। अब लक्ष्मण की सलाह पर राम कृतांतवदन व अनेक विद्याधरों को साथ में लेकर विमान से सीता की खोज में निकले। सीता कहीं भी नहीं मिली। राम ने उसे जंगली जानवरों द्वारा खाया हुआ जानकर वे घर आए एवं सीता का प्रेतकार्य किया। 475
पंडरीकनगरी में रहती हई सीता के अनंगलवण व मदनांकुश नामक दो पुत्र हुए। राजा ने उनके जन्म व नामकरण का महोत्सव आयोजित किया। कुछ बड़े होने पर उन्हें विद्या प्राप्त करने हेतु सिद्धार्थ नामक अनुव्रतधारी सिद्धिपुत्र को सौंपा गया। भिक्षार्थ आए सिद्धार्थ ने "ये दोनों पुत्र तुम्हारे मनोरथ शीघ्र पूरा करेंगे, ऐसी भविष्यवाणी की। सिद्धार्थ ने दोनों शिष्यों को अनेक कलाओं में पूर्ण कर दिया। लवण जब यौवन वय का हुआ तब वज्राजंध ने अपनी पुत्री शिशिचूला एवं बत्तीस कन्याओं का विवाह उससे कर दिया। अंकुश के लिये राजा पृथु से युद्ध कर उसे हराकर उसकी पुत्री कनकमाला का विवाह करवाया। दोनों भाइयों के विवाह के बाद एक दिन वहाँ नारद आए। वज्राजंध के निवेदन पर नारद ने लवण व अंकुश के वंश का पूर्ण परिचय उन्हें दिया? "।
(घ) राम व लवण-अंकुश का मिलन : प्रसंगवश जब नारद से लवणांकुश को राम-लक्ष्मण का परिचय प्राप्त हुआ तो अंकुश को बिना परीक्षा किए राम द्वारा सीता का त्याग अनुचित लगा। 477 तब नारद से उन्होंने अयोध्या की दूरी पृछी जो नारद ने एक सौ साठ योजन बताई। अब लवण ने राजा वज्राजंध से अयोध्या जाने की आज्ञा माँगी। लवणांकुश की अयोध्या जाने की इच्छा पर 478 विवाह के बाद लवणांकुश. वज्राजंध एवं पृथु चारों ने
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