________________
भरत की माता कैकेयी ने भी संयम व्रत स्वीकार कर लिया। । भरत के दीक्षा ग्रहण करने के बाद नगरजनों व विद्याधरों ने राम को राज्य ग्रहण करने की प्रार्थना की। राम ने उन्हें वासुदेव लक्ष्मण का राज्याभिषेक करने की आक्षा दी अतः उन्होंने तदनुसार लक्ष्मण का राज्याभिषेक किया। तत्पश्चात् बलदेव राम का राज्याभिषेक हुआ। अब आठवें वसुदेव एवं बलदेव राज्य करने लगे। राम ने विभीषण को राक्षसदीप, सुग्रीव को वानरदीप, हनुमान को श्रीपुरनगर. विराध को पाताल लंका, नील को ऋक्षपुर तथा प्रतिसूर्य को हनुपुर नगर दिए । इसी प्रकार रत्नजटी को नैवोपगीतनगर तथा भामंडल को रथनूपुर नगर सौंपा। शत्रुघ्न ने मथुरा नगर को ग्रहण किया। राम उन्हे मथुरा देना नहीं चाहते थे परंतु अधिक आग्रह करने पर राम ने उन्हें मथुरा का राज्य दे दिया। 46। अब राम एवं लक्ष्मण आनंद से साम्राज्य चलाने लगे।
(१३) परवर्ती घटनाएँ : (क) शत्रुघ्न की मथुरा विजय : शत्रुघ्न ने जब मथुरा का राज्य माँगा तो राम ने उन्हें समझाया कि मथुरा के राजा मधु के पास अमरेन्द्र द्वारा दिया हुआ शत्रुओं के लिए घातक त्रिशूल है. अतः तुम कष्टसाध्य मथुरा नगरी को न लेकर अन्य राज्य माँग लो। लेकिन शत्रुघ्न बोले- "प्रतिकारं करिष्यामि व्याधेरिव भिषग्वरः। राम ने देखा यह हठी मानेगा नहीं, अतः उसे समझाया कि मधु जब त्रिशूल रहित हो तभी तुम युद्ध करना। 462 "
राम ने कृतांतवदन सेनापित के साथ शत्रुघ्न को मथुरा जाने की आज्ञा दी। लक्ष्मण ने शत्रुघ्न को अग्निमुख बाण व अर्णवावर्त धनुष दिए। मथुरा पहुँच कर शत्रुघ्न नदी के तीर पर रहे एवं गुप्तचर को जानकारी लाने हेतु नगर में भेजा। गुप्तचर समाचार लाया कि वह मधु त्रिशूल रहित रानी जयंति के साथ उपवन में क्रीड़ारत है। यह देख शत्रुघ्न ने रात को मथुरा में प्रवेश किया। समाचार मिलते ही मधु की सेना सामने आ डटी। युद्धारंभ में ही शत्रुघ्न ने मधुपुत्र लवण को मार दिया। 463 पुत्र वध से क्रोधित मधु एवं शत्रुघ्न दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में शत्रुघ्न ने समुद्रावर्त एवं अग्निमुख बाणों के प्रहार से मधु को मार दिया। मधु समझ गया कि त्रिशूल रहित इसने मुझे मारा है। मैंने कभी देवपूजा नहीं की, जिनालयों का निर्माण नहीं करवाया, दान-पुण्य नहीं दिया। ऐसे विचार करते हुए उसके प्राण निकल गए। मरने पर वह देव हुआ।
अब त्रिशूल ने जाकर उसके मित्र चमर को मधु के मरने की सूचना दी। समाचार पाते ही मधु-मित्र चमर शत्रुघ्न को मारने चला। इन्द्र के समझाने पर भी वह नहीं माना। चमर ने मथुरा में आकर अनेक व्याधियाँ उत्पन्न की! प्रतिदिन व्याधियों से दुःखी होकर शत्रुघ्न अयोध्या गए एवं राम-लक्ष्मण तथा कुलभूषण मुनि से प्रार्थना की कि. हे प्रभु, मथुरा में इस व्याधियों का क्या
103