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________________ भगवान् श्री महावीर/२०१ दो केवल ज्ञान की प्राप्ति ___ भीषण उपसर्गों, परीषहों व कष्टों को सहते हुए भगवान् महावीर ध्यान एवं तपस्या के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरण कर रहे थे। विचरते-विचरते प्रभु जंभिय ग्राम के बाहर पधारे। वहां ऋजु बालुका नदी के किनारे श्यामाक गाथापति के खेत में शाल वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ हो गये । बेले का तप, गोदोहिका आसन, बैसाख शुक्ला दशमी, दिन का अंतिम प्रहर, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, क्षपक श्रेणी का आरोहण, शुक्लध्यान का द्वितीय चरण, शुभ भाव, शुभ अध्यवसाय में भगवान् ने बारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म का समूल नाश किया तथा अवशिष्ट तीन वाति कर्म-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय व अंतराय कर्म का क्षय कर तेरहवें गुणस्थान में केवल ज्ञान व केवल दर्शन को प्राप्त किया। मूर्त्त-अमूर्त सभी पदार्थों को भगवान् देखने लगे। छद्मस्थ काल की साधना भगवान् महावीर का छद्मस्थ काल बारह वर्ष छह माह पन्द्रह दिन रहा। इस काल में उनकी तपस्या इस प्रकार रही ० षट्मासी एक ० पांच दिन कम षट्मासी एक ० चातुर्मासिक नौ 0 त्रिमासिक ० सार्ध द्विमासिक दो ० द्विमासिक ० सार्ध मासिक दो ० मासिक बारह ० पाक्षिक बहत्तर ० भद्र प्रतिमा एक (दो दिन) ० महाभद्र प्रतिमा एक (चार दिन)० सर्वतोभद्र प्रतिमा एक (दस दिन) ० तेला बारह ० बेला दो सौ उनतीस भगवान् ने बेले के दिन दीक्षा ली थी इस कारण साधनाकाल में एक उपवास को और जोड़ देते हैं। उनकी तपस्या ग्यारह वर्ष छह माह पचीस दिन (४१६६ दिन) हुई। पारणा अवधि ग्यारह माह उन्नीस दिन (३४९ दिन) थी। भगवान् की सारी तपस्या चौविहार (निर्जल) थी। कई ऐसा भी मानते हैं कि भगवान् ने चोला (चार दिन) आदि की तपस्या भी की थी। प्रथम देशना केवली बनने के बाद चौसठ इन्द्रों व अनगिनत देवी-देवताओं ने भगवान् का केवल महोत्सव मनाया। देवों ने समवसरण की रचना की । इस समवसरण में केवल देवी-देवता थे। भगवान् ने प्रवचन दिया, पर चतुर्विध संघ की स्थापना नहीं हो सकी। देवों ने प्रभु-प्रवचन को सराहा, पर महाव्रत व अणुव्रत दीक्षा नहीं ले सके क्योंकि देवों में यह प्राप्त करने की अर्हता नहीं होती। ऋजु बालुका नदी के किनारे जंगल में देशना होने से कोई मनुष्य नहीं आ सका। तीर्थंकर का उपदेश कभी
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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