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________________ भगवान् श्री अरिष्टनेमि/१३७ यह एक विस्मयकारी घटना घटित हुई क्योंकि यौगलिकों का नरक गमन नहीं होता। उसी हरिवास युगल से हरिवंश की उत्पत्ति हुई। यह समय दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ व ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांस नाथ के मध्य का था । हरिवंश में अनेक शक्तिशाली, प्रतापी और धर्मात्मा राजा हुए हैं। उनमें पृथ्वीपति महागिरि, हिमगिरि, वसुगिरि, दक्ष, महेन्द्रदत्त, शंख, वसु आदि अनेक नरेश हुए हैं। आकाश में अधर सिंहासन पर बैठने वाले जिस वसु का वर्णन आता है वे ये ही वसु राजा थे। इनके बाद दीर्घबाहु, वज्रबाहु आदि राजाओं के बाद सुभानु राजा बने। इनके पुत्र यदु इस हरिवंश के महापराक्रमी व प्रभावशाली राजा हुए। यदु के वंश में सौरी और वीर नाम के दो बड़े शक्तिशाली राजा हुए। राजा सौरी ने सौरिपुर व वीर ने सौवीर नगर बसाया । नेमि का पैतृक कुल हरिवंशीय महाराज सौरी से अंधकवृष्णि और भोग वृष्णि- ये दो पराक्रमी पुत्र | अंधकवृष्णि के समुद्र विजय, अक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान, अचल, धरण, पूरण, अभिचंद और वसुदेव- ये दस पुत्र थे, जो दशार्ह नाम से प्रसिद्ध हुए । इनमें बड़े समुद्र विजय और छोटे वसुदेव विशेष प्रभावशाली थे। समुद्रविजय बड़े न्यायशील उदार व प्रजावत्सल राजा थे। वसुदेव ने अपने पराक्रम से देश-देशान्तर में ख्याति अर्जित की। अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि व दृढ़नेमि समुद्र विजय के पुत्र थे। इनकी माता का नाम शिवा था । कृष्ण व बलराम वसुदेव के पुत्र थे। इनकी माताएं क्रमशः देवकी व रोहिणी थी । अरिष्टनेमि के श्री कृष्ण चचेरे भाई थे । बाल्यकाल जब अरिष्टनेमि करीब चार वर्ष के हुए, उस समय यादवों ने एक बड़े संकट को पार किया। श्री कृष्ण ने मथुरा नरेश कंस का वध किया। इससे उसकी पत्नी जीवयशा को क्रुद्ध होकर अपने पिता प्रतिवासुदेव जरासंघ के पास आई और सारा घटना क्रम सुनाया। जरासंध ने यदुकुल का समूल नाश करने के लिए अपने पुत्र व सेनापति कालकुमार को ससैन्य भेजा। कुलदेवी की कृपा से यादव सकुशल समुद्र किनारे पहुंच गये । देव सहयोग से सर्व सुविधा संपन्न द्वारिका नगरी का निर्माण किया और उसमें सभी यादव सुख पूर्वक रहने लगे। काल कुमार उस कुलदेवी की माया से मारा गया । जरासंघ के युद्ध में यादवों के साथ द्वारिका पुरी में रहते हुए बलराम और कृष्ण ने अनेक राजाओं को वश में कर अपना राज्य विस्तार किया । यादवों की समृद्धि और ऐश्वर्य की
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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