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________________ १३०/तीर्थंकर चरित्र गाई। केवल ज्ञान प्रभु की छद्मस्थ चर्या सिर्फ नौ मास की थी। साधना की प्रचण्ड अग्नि में उनके कृतकर्म स्वाहा हो गये। विचरते-विचरते भगवान् नमि पुनः दीक्षा स्थल सहस्राम्र उद्यान में पधारे । वोरसली नामक वृक्ष के नीचे उत्कृष्ट ध्यान मुद्रा में उन्होंने क्षपक श्रेणी ली तथा घातिक कर्मों को क्षय कर कैवल्य प्राप्त किया। देवों ने केवल महोत्सव के साथ समवसरण की रचना की। जन्मभूमि व आस-पास के हजारों लोग भगवान् का उपदेश सुनने के लिए उद्यान की ओर उमड़ पड़े । भगवान् ने प्रथम प्रवचन में आगार व अणगार धर्म की परिभाषा बतलाई। भगवान् की वाणी से प्रभावित होकर अनेक व्यक्ति घर छोड़कर अणगार बन गये तथा अनेक व्यक्तियों ने गृहस्थ धर्म की उपासना स्वीकार की। निर्वाण सुदीर्घकाल तक धर्मसंघ की प्रभावना करते हुए भगवान् नमिनाथ आर्य जनपद में अतिशययुक्त विचरते रहे । अन्त में सम्मेद शिखर पर एक हजार चरम शरीरी मुनियों के साथ उन्होंने अनशन किया। वैशाख कृष्णा दशमी के दिन शुक्ल ध्यान के चतुर्थ चरण में पहुंच कर चार अघाती कर्मों को क्षय करके निर्वाण को प्राप्त किया। प्रभु का परिवार ० गणधर ० केवलज्ञानी १६०० ० मनः पर्यवज्ञानी १२५० ० अवधिज्ञानी १६०० ० वैक्रिय लब्धिधारी ५००० ० चतुर्दश पूर्वी ४५० ० चर्चावादी १००० ० साधु २०,००० ० साध्वी ४१,००० 0 श्रावक १,७०,००० ० श्राविका ३,४८,००० एक झलक० माता वप्रा ० पिता विजय १७
SR No.022697
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumermal Muni
PublisherSumermal Muni
Publication Year1995
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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