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"वैद्य अपने घर से शस्त्रकोष लेकर निकलते थे और रोग का निदान (निश्चय) कर अभ्यंग, उबटन (उद्वर्तन), स्नेहपान, वमन, विरेचन, अवदहन - (गर्म लोहे की शलाका आदि से दागना), अवस्नान (औषधियों के जल से स्नान करना), अनुवासना (यंत्र द्वारा तेल आदि को अपान द्वारा पेट में चढ़ाना), बस्तिकर्म (चर्मवेष्टन द्वारा सिर आदि में तेल लगाना, अथवा गुदा भाग में बत्ती आदि चढ़ाना), शिरावेध (शिरा को खोलकर रक्त निकालना), तक्षण (छुरे आदि से त्वचा काटना), प्रतक्षण (त्वचा का थोड़ा सा भाग काटना), शिरोबस्ति । सिर पर चर्मकोश बांधकर उसमें औषधि द्वारा संस्कृत तेल का पूरना), तर्पण (शरीर में तेल लगाना), पुटपाक (विशेष प्रकार से पकाकर औषधि या औषधि का रस तैयार करना तथा छाल, वल्ली (गुजा आदि), मूल, कंद, पत्र, पुष्प, फल, बीज, शिलिका, (चिरायता आदि कड़वी औषध), गुटिका, औषध और भेषज्य से रोगी की चिकित्सा करते थे।" ___'निशीथचूणी' में प्रतक्षणशस्त्र, अंगुलिशस्त्र, शिरावेधशस्त्र, कल्पनशस्त्र, लौहकटिका, संडसी, अनुवेधन शलाका, ब्रीहिमुख और सूचिमुख शस्त्रों का उल्लेख मिलता है।" तत्कालीन अनेक वैद्यों का उल्लेख जैन आगम ग्रंथों में मिलता है और उनके द्वारा की गई चिकित्सा का वर्णन भी प्राप्त होता है ।'
'विपाकसूत्र' विजयनगर के धन्वन्तरि नामक वैद्य का उल्लेख है, वह आयुर्वेद के आठ अंगों में कुशल था और राजा, ईश्वर सार्थवाह, दुर्बल, म्लान, रोगी, अनाथ, ब्राह्मण, श्रमण, भिक्षुक, कर्पाटिक आदि को मछली, कछुआ, ग्राह, मगर, संसुमार, बकरी, भेड़, सूअर, मृग, खरगोश, गाय, भैंस, तीतर, बत्तक, कबूतर, मयूर आदि के मांस का सेवन कराते हुए चिकित्सा करता था । द्वारका में रहने वाले वासुदेव कृष्ण के धन्वन्तरि और वैतरणी नामक दो प्रसिद्ध वैद्य थे ।
_ 'विजयवर्धमान' नामक गांव का निवासी 'इक्काई' नामक राष्ट्रकूट था। वह पांच सौ गांव का स्वामी था। एक बार वह अनेक रोगों से पीड़ित हुआ। उसने यह घोषणा की कि जो वैद्य (शास्त्र और चिकित्सा में कुशल), वैद्यपुत्र. ज्ञायकः (केवल शास्त्र में कुशल), ज्ञायकपुत्र, चिकित्सक (केवल चिकित्सा में कुशल) और चिकित्सकपुत्र उसके रोग को दूर करेगा, वह विपुल धन देकर उसका सम्मान करेगा।
1 विपाकसूत्र 1, पृ. 8 2 निशीथचूर्णी 1113436 3 विपाकसूत्र 7, पृ. 41 + प्रावश्यकचूर्णी पृ. 460 5 विपाक सूत्र 1 पृ. 7, आवश्यकचूर्णी 2, पृ. 67, सुश्रुत, सूत्र. प्र. 114,47-50 में तीन प्रकार के वैद्यों का उल्लेख है - केवल शास्त्र में कुशल, केवल चिकित्सा में कुशल और शास्त्र व चिकित्सा दोनों में कुशल ।
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