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अध्याय 4. जैन-प्रायुर्वेद के ग्रन्थकार और उनके ग्रन्थ पृ. 72-17:
पादलिप्तसूरि, जैनसिद्ध नागार्जुन, धनञ्जय, दुर्गदेव, महेंद्रजैन, जिनदास, दुर्लभराज, हेमचंद्रसूरि (हेमचंद्राचार्य), गुणाकर, प्राशाधर, हंसदेव, चम्पक, यशःकोतिमुनि, हरिपाल, मेरुतुग, सिंह, अनन्तदेवसूरि, नागदेव (ठक्कुर जिनदेव), माणिक्यचन्द्रजैन, चारुचंद्रसूरि रुद्रपल्लीय, श्रीकण्ठसूरि, पूर्णसेन, पं. जिनदास, नयनसुख, नर्बुदाचार्य (नर्मदाचार्य), हर्षकीतिसूरि, जयरत्नगरिण, लक्ष्मीकुशल, हंसराजमुनि, हस्तिरुचि, मथेन राखेचा, हेमनिधान, नयनशेखर, महिमसमुद्र (जिनसमुद्रसूरि), धर्मवर्धन (धर्मसी), लक्ष्मीवल्लभ, मानमुनि, विनयमेरुगणि, रामचंद्र, ज्ञानमेरु, नगराज, पीताम्बर, जोगीदास मथेन (दासकवि), समरथ, गुणविलास, लक्ष्मीचद, दीपकचंद्र वाचक, मेघमुनि, चैनसुखयति, रामविजय उपाध्याय, चैनरूप, रघुपति, विश्राम, मलूकचंद, सुमतिधीर, कर्मचंद्र, हंसराज पिप्पलक, गंगाराम यति, ज्ञानसार, लक्ष्मीचंद जैन, श्रीपालचंद्र, रामलाल महोपाध्याय, ऋद्धिसार या रामऋद्धिसार, मुनि कांतिसागर ।
अध्याय 5. दक्षिण भारत के जैन-प्रायुर्वेद-ग्रन्थकार पृ. 176-180
मारसिंह, कोतिवर्मा, सोमनाथकवि, अमृतनंवि, मगराज (मंगरस)प्रथम, श्रीधरदेव, बाचरस, पद्मरस, मंगराज (मंगरस द्वितीय), मंगराज (मंगरस-तृतीय), साल्व ।
(पत्र 14) - परिशिष्ट 1. अज्ञात-कर्तृक रचनाएं परिशिष्ट 2. जैन प्रायुर्वेद-ग्रन्यकार एवं व्यक्ति-मनुक्रमणिका पृ, 182 परिशिष्ट 3. जैन मायुर्वेद-प्रन्थ अनुक्रमणिका
पृ. 183-184
पृ. 181