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________________ तीसरा भाग (३.) पांडव और कौरवोंने द्रोणाचार्य के निकट धनुष्यविद्याकी शिक्षा ली थी। इन सबमें अर्जुन धनुष्यविद्य में बहुत ही. निपुण थे। अन्य चारों पांडव भी वीर और पराक्रमी थे। (४) कुछ समयके बाद राजा पांडु संसारसे विरक्त होगए, उन्होंने अपना राज्य धृतराष्ट्रको दिया और युधिष्ठिर भादि पांचों पुत्रोंको उनके सुपुर्द कर दिया। वे साधु होकर जंगलको चले गए। राजा धृतराष्ट्र के निकट पांडव सुखसे रहे । (५) कुछ समय बाद राजा धृतराष्ट्र अपने पुत्र कौरवों और पांडवोंको माधा २ राज्य देकर साधु होगए । (६) पांडव बड़े प्रतापी थे, वे अपने धनुष बाण और लक्ष्य. वेधसे बड़े २ राजाओंको चकित करते थे। दुर्योधन मादि कौरवोंसे पांडवोंका प्रताप न देखा गया, उनका वैर विरोध परस्पर बढ़ता ही गया। कौरव चाहते थे कि हमें, सारा राज्य प्राप्त हो इसलिये कौरवोंक मारनेकी चेष्टामें लगे रहते थे। परन्तु ऊपरसे प्रीति ही दिखलाते थे और उनक साथ सुंदर २ प्रदेशोंमें क्रीड़ा करते थे। (७) आधे राज्यको भोगते हुये पांडव और कौरव एक दिन सभाभवनमें बैठे थे। उस समय कौरवोंने कहा कि हम सौ भाई हैं और पांडव केवल पांच माई हैं । इसलिये आधा २ राज्य नहीं बट सकता । गज्यके १०५ भाग किये जाय और इन्हें ५ माग देकर हमें १०० भाग दिये जाय । इससे भीम बहुत क्रोधित हुमा परन्तु. युधिष्ठिरके समझानेसे वह शांत होगया।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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