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तीसरा भाग
पाठ ८॥
प्रद्युम्नकुमार। (१) प्रद्युम्नकुमारका जन्म श्रीकृष्णकी प्रधान पटरानी रुक्मणीके गभसे हुभा था।
(२) जिस समय प्रद्युम्न का जन्म हुमा उसी समय उनके पूर्व जन्मका शत्रु धूमकेतुदेव विमानपर बैठा जारहा था। अचानक श्रीकृष्णके महलपर भाते ही उसका विमान रुक गया, उसने भवधिज्ञानसे अपने शत्रुको जानकर मायासे महकमें प्रवेश किया और बालक प्रद्युम्नको उठाकर भाकाश मार्गसे ले गया । वह उसे मारनेकी इच्छासे एक विशाल शिलाके नीचे रखकर चला गया ।
(३) विजयार्द्ध पर्वतके मेघकूट नगरका विद्याधर गजा कालसंभव अपनी रानी सहित घूमता हुआ उस शिलाके निकट भाया। उस शिलाको हिलती देखकर उसे अचंभा हुआ। उसने अपने विद्याबलमे शिला उठाई और बालक प्रद्युम्नको उठाकर उसने अपनी रानीको दिया ।
(४) रुक्मिणी तथा कृष्णको पुत्र वियोगका बहुत दुःख हुआ। परन्तु नारदके यह कहनेपर कि १६ वर्ष बाद पुत्र मिलेगा, उनका यह दुःख कम होगया।
(५) प्रद्युम्नकुमार जवान हुये उस समय उन्होंने कालशत्रुके प्रबलशत्रु अग्निराजको विजय किया। वे बहुमूल्य भूषणोंसे सजकर महलको मारहे थे कि उन्हें देखकर रानी कांचनमाला उनपर मोहित