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________________ पाचीन जैन. इतिहास। २४ (२२) श्रीकृष्ण और बलराम अपनी जान लेकर भागे और जाकर जंगलमें एक पेड़ के नीचे थक कर पडे रहे। उन्हें प्यासने सताया। बलराम उन्हें सोता छोड़कर पानी ढूंढनेको चले गये। श्री कृष्ण पेडके सहारे लेट रहे। उनके तलवे में पद्मका चिह्न था, वह दूरसे चमक रहा था। जरत्कुमार भी इस वनमें मा निकला। उसने दूरसे चमकता हुमा पद्म देखा। उसे हिरणका नेत्र समझ कर उसने चट कमानपर तीर चढ़ाया और निशाना ताक कर इस तरह मारा कि श्रीकृष्णके पद्मको आर पार कर गया। श्रीकृष्ण चिल्लाए। उनका चिल्लाना सुन कर जरत्कुमार उनके पास आया। श्रीकृष्णको देखकर उसके होश गुम होगये । श्रीकृष्णने उससे कहा-माई ! बलराम पानी लेने गये हैं, वह न माने पायें, इससे पहिले ही तुम यहांसे चले जाओ, नहीं तो वह तुम्हें विना मारे न छोडेंगे । श्रीकृष्णकी भाज्ञासे जरत्कुमार वहांसे चला गया। श्रीकृष्णको मृत्यु होगई। (२३) बलरामने उन्हें देखा तो वे उनके मोहमें पागल होगये । श्रीकृष्ण के शबको लेकर वे लगातार छह महीने तक इधर उधर घूमते रहे । जब उन्हें एक देवने आकर संबोधित किया तब उनका मोह छूटा। और उन्होंने श्रीकृष्णका दाह कर्म किया । (२४) श्रीकृष्ण मरकर तीसरे नर्क गये। बलरामने संसारसे उदास होकर तप किया और वे स्वर्ग गए।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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