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________________ तीसरा भाग पूरेगा और फिर इस धनुष्यको चढ़ा लेगा उसे मैं अपनी पुत्री दूंगा। श्री कृष्णने जब उन तीनों रत्नोंको प्राप्त किया तब उन्हें तलाश करनेवाले सिगहियोंने निवेदन किया कि नंदगोपके पुत्रने ही ये तीनों काम एक साथ किए हैं। (१०) शत्रुका निश्चय होजाने पर कंसने उसके जाननेकी इच्छासे नंद गोपको कहला भेजा कि नागराज जिसकी रक्षा करते हैं ऐसा एक हजार दलवाला कमलका फूल लाकर दो। यह सुनकर नंद गोपके शोकका पारावार न रहा। उन्होंने श्रीकृष्णसे कहा कि तू ही उपद्रव करता रहता है, अब तु ही कमल लाकर राजा कंसको दे। श्रीकृष्णने कहा यह क्या कठिन काम है, मैं अभी ले आऊंगा। वे महानागोंसे सुरक्षित सरोवरमें निशंक होकर कूद पड़े। उन्हें माता देख यमराजके समान नागराज खड़ा होकर उन्हें निगलनेके लिये तैयार होगया। वह क्रोषसे कांप रहा था और श्वासोंसे मग्निके कण फेंक रहा था। कृष्ण जलसे भीगा हुआ पीतांबर उठा कर उसकी फणा पर धोने लगे। वह नागराज व्रजपातके समान उस पीतांबरके गिरनेसे छोटे पक्षीके समान डर गया और कृष्णके पूर्व पुण्य कर्मके उदयसे अदृश्य होगया । कृष्णने इच्छानुसार कमक तोड़े और कंसके पास पहुंचा दिए । कमलोंको देखकर कंसको निश्चय होगया कि मेरा शत्रु नंद गोपके समीप ही है। (११) एक दिन कंसने नंदगोपालको कहला भेजा कि तुम अपने मल्लों के साथ २ मल्ल युद्ध देखने माओ । नंदगोप कृष्ण : मादि सब मल्लोंको लेकर निर्भय हो मथुराको चले । नगरमें घुसते ही
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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