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________________ प्राचीन जैन इतिहास । ૮ देखा । उन्होंने उस बेलरूपी देवकी गर्दन तोड़ दी थी। श्री कृष्णको देखकर उन्होंने पहले तो गन्धमाला आदिसे उसकी मानता की, फिर बड़े प्रेमसे आभूषण पहिनाए और प्रदक्षिणा दी। उस समय देवकी के स्तनोंसे दूत्र निकलने लगा और अभिषेक करते समय श्रीकृष्णके मस्तक पर पड़ने लगा । उसे देखकर बलभद्र सोचने लगे कि इस तरह भेद खुलने का डर है । वे बुद्धिमान कहने लगे कि उपवास के खेदसे या पुत्र मोहसे वह मूर्च्छित होगई है । इसके बाद कृष्ण का अभिषेक किया। फिर व्रजके सब लोगों का यथायोग्य आदर सत्कार किया और बड़ी प्रसन्नता से गोपाल कुमारों के साथ कृष्णको भोजन कराया और फिर वे सब मथुरा नगरको चल दिये । (८) एक दिन व्रजमें पानी बहुत बरसा, तब कृष्णने गोवर्द्धन नामका पर्वत उठा कर उसके नीचे गायों तथा गोवाकोंकी रक्षा की। इससे उनकी कीर्ति संसार में फैल गई । ( ९ ) एक दिन मथुरा नगर में प्राचीन जिनालय के समीप पूर्व दिशा के अधिष्ठाता देव मंदिर में सर्प शय्या, धनुष और शंख ये तीन रत्न उत्पन्न हुए। उन तीनों रत्नोंकी देव रक्षा करते थे और वे तीनों रत्न कृष्णकी होनहार लक्ष्मीको सूचित करते थे । उन्हें देखकर मथुगका राजा कंस डरने लगा । और वरुण नामके निमित्त ज्ञानीसे उनके प्रगट होने का फल पूछा । उसने कहा कि इसका सिद्ध करनेवाला आपका नाशक होगा। तब कंसने नगर में यह घोषणा करा दी कि जो मनुष्य नाग शैय्या पर चढ़कर एक हाथसे शंखको
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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