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________________ प्राचीन जैन इतिहास। १२१ दिया और वह स्वयं बौद्धोंके कोपभाजन बन गये। धर्मके लिये वह अमर शहीद होगये। (७) अकलङ्कदेव संसारके वैचित्र्यको देखकर विरक्तमन होगये । वह सुधापुर ( उत्तर कनाराका सोड ग्राम ) पहुंचे और वहां जैन संघमें सम्मिलित होगये । उन्होंने जिनदीक्षा ग्रहण करली। विद्या और बुद्धि दोनोंमें वह भद्वितीय थे। यम-नियमके पालनमें भी उन्होंने विशेष संयम और धैर्य का परिचय दिया था और वह शीघ्र ही इस संघके आचार्य होगये थे। यह संघ " देवसंघ देशीयगण "के नामसे प्रसिद्ध था और अकलङ्कदेव तब इसके प्रमुख हुये थे। (८) भकलङ्कदेव तब एक बड़े भारी नैयायिक और दार्शनिक विद्वान होगये। उनके व्यक्तित्वसे उस समयके जैन संघमें नवस्फूर्ति भागई । उनकी सबसे अधिक प्रसिद्धि इस विषयमें है कि उन्होंने अपने पांडित्यसे बौद्ध विद्वानोंको पराजित करके जैन धर्मकी प्रतिष्ठा स्थापित की थी। उनका एक बड़ा भारी शास्त्रार्थ राजा हिमशीतलकी सभामें हुआ था। हिमशीतल पल्लव वंशका राजा था। और उसकी राजधानी कांची (कांजीवरम्) में थी। वह बौद्ध था। किंतु उसकी एक रानी नैनी थी। वह धर्म प्रभावना करना चाहती थी। बौद्ध उनके मार्ग में कण्टक बन जाते थे । इसलिये उन्होंने भट्टाकलङ्कदेवको निमंत्रित करके इस शास्त्रार्थकी योजना करा दी । यह शास्त्रार्थ १७ दिनतक हुमा था और इसमें जैनधर्मको बड़ी भारी विजय प्राप्त हुई थी । राजा हिमशीतल स्वयं जैनधर्ममें दीक्षित होगया था और उसकी भाज्ञासे
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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