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________________ भाबीन जैन इतिहास। ११४ 'जेणुभियर्थभुवरिमजक्खतिरीटगकिरणजलधोया। सिद्धाण सुद्धपाया सो राओ गोम्मटो जयउ ॥ ९७१ ॥ ____ अर्थ-जिसने चैत्यालयमें खड़े किए हुए खमों के ऊपर स्थित जो यक्षके भाकार हैं, उनके मुकुटके मागेके भागकी किरणों रूप जलसे सिद्ध परमेष्ठियों के आत्मप्रदेशोंके भाकार रूप शुद्ध चरण धोये हैं, ऐसा चामुण्डराय जयको पाओ।' (१२) इसप्रकार श्रवणबेलगोलको चामुंडरायने विपुल धन. राशि व्यय कुरके दर्शनीय स्थान बना दिया था। अपने इन धार्मिक कृत्योंके कारण ही चामुण्डराय जनसाधारणको प्रिय और धर्मप्रभावक थे। किन्तु उनके निमित्तसे संपन्न हुमा एक अन्य महत्वशाली कार्य विशेष उल्लेखनीय है । वह है श्री नेमिचन्द्राचार्य द्वारा उनके लिए "गोम्मटसार" सिद्धांतग्रन्थका रचा जाना। जैन दर्श के लिये यह भमूल्य रत्न-पिटक है। इसके अतिरिक्त श्री नेमिचन्द्राचायने और भी कई ग्रन्थोंका प्रणयन किया था, जिनमें उल्लेखनीय यह हैं .. (१) द्रव्यसंग्रह, (२) कब्धिसार, (३) क्षणासार, (४) त्रिलोकसार, (५) प्रतिष्ठापाठ (?). (१२) अपने गुरुके अनुरूप चामुण्डराय भी एक भाशु न्युकार थे । उन्होंने संस्कृत पकन और कनड़ी भाषा हरा कविता-कामिनीकी उपासना की थी। किन्तु उनकी रचनाओं में अब मात्र दो ही उपलब्ध हैं, (१) चारित्रप्तार और (२) त्रिषष्टिलक्षण पुराण । पहला संस्कृत भाषा में प्राचार ग्रन्थ है और दूसरा कनड़ी भाषाका पुराणग्रन्थ है, जो बेंगलो से छप चुका है। कहते हैं कि
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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