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तीसरा भाग श्री चामुण्डराय और भाचार्य नेमिचन्द्रजीकी भतझ सूझकी सूचक है।
(११) आचार्य महोदय उनके धर्म कार्यों का वर्णन इस प्रकार करते हैं--- गोम्मटसंगहमुत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो य। गोम्मटरावविणिम्मियदक्षिण कुक्कडजिणो जयउ ॥१६८॥
अर्थ-'गोमटसार संग्रहरूप सूत्र' गोम्मट शिखरके ऊपर चामुंडराय राजाके बनवाये हुए जिवमंदिरमें विराजमाव एक हाथ प्रमाण इन्द्रनीलमणिमय नेमिनाथ तीर्थंकरदेवका प्रतिबिंब तथा उसी चामुंड. राय द्वारा निर्मापित लोकमें रूढिसे प्रसिद्ध दक्षिण कुक्कुट नामक. प्रतिबिंब जयवन्त प्रवर्ती।' 'जेण विणिम्मियपडिमावयणं सवसिद्धिदेवेहिं । सबपरमोहिजोगिहि दि सो गोम्मटो जयउ ॥ ९६९ ॥
अर्थ- जिस रायने बबवाई उस जिन प्रतिमाका मुख सर्वार्थसिद्धि के देवोंने तथा सर्वावधिके धारक योगीश्वरोंने देखा है। वह चामुंडराय सर्वोत्कृष्टपने प्रवतों ।' 'बज्जयणं जिणभवणं ईसिपभारं मुवण्णकलसं तु | तिहुवणपडिमाणिक्कं जेण कय जयउ सो राओ ॥९७०॥
अर्थ-जिसका भवनितल वज्र सरीखा है, जिसका ईषपाग्मार माम है, जिसके ऊपर सुवर्णमई कलश है, तथा तीन लोकमें उपमा देने योग्य ऐसा भद्वितीय जिनमंदिर निसने बनवाया वह चामुण्ड-- राय जयवंत होवो।