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________________ तीसरा भागे था, जब दिगम्बर और श्वेताम्बर आपस में प्रेमसे रहते हुये धर्मप्रभावना के कार्य कर रहे थे । श्वेताम्बर उपासक सिद्धय्यके लिये एक निर्ग्रन्थाचार्यका शास्त्ररचना करना इसी वात्सल्यभावका द्योतक है । यह निग्रेन्थाचार्य श्री उमास्वामिके अतिरिक्त और कोई न थे ! ( ५ ) इसके अतिरिक्त धर्म और संघके लिये उनने क्या क्या किया, यह कुछ ज्ञात नहीं होता। इस कारण इन महान् आचार्य के विषय में इस संक्षिप्त वृत्तान्त से ही संतोष धारण करना पड़ता है | दिगम्बर संप्रदाय में वह श्रुतिमधुर उम स्वामी' के नामसे और श्वेताम्बर संपदाय में ' उमास्वाति के नामसे प्रसिद्ध हैं । • पाठ २७ । स्वामी समन्तभद्राचार्य । समन्तभद्रो भद्रार्थो भातु भारत-भूषणः । ? ( १ ) स्वामी समन्तभद्राचार्य जिनशासन के नेता थे और वह थे भारत भूषण ! एक मात्र भद्र प्रयोजन के लिये उन्होंने लोकका उपकार करके भारतका मस्तक ऊंचा कर दिया था । 4 (२) स्वामी समन्तभद्राचार्यको जन्म देने का श्रेय भी दक्षिणभारतको प्राप्त है । ईस्वीकी प्रारम्भिक शताब्दियोंमें कदम्बराजवंश भारतमें प्रसिद्ध था । इस वंशके प्रायः सब ही राजा जैन धर्मानुयायी थे | स्वामीजीने संभवतः इसी राजवंशको अपने जन्मसे सुशोभित किया था। उनके माता-पिताके नाम और उनकी
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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