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________________ प्राचीन जैन इतिहास। १६ विद्यमान तीर्थकर सीमन्धरस्वामीका स्मरण किया था। तीर्थकर भावानने परोक्ष रूपमें धर्म लाम दिया था, किसे सुनकर दो * चारण ' देव उनके दर्शन करने यहां भाये थे और भाखिर वे उन्हें पूर्व विदेह लेगये थे, जहां उन्होंने तीर्थकर भगवान के साक्षात दर्शन किये थे । तीर्थकर भगवान के निकट उन्होंने सिद्धांत ग्रन्थोंका अध्ययन किया था और. वह (१) मतांतर निर्णय, (२) सर्वशास्त्र, (३) कर्मप्रकाश, (४) न्यायप्रकाश नामक चार ग्रन्थ वहांसे अपने साथ ले माये थे। (९) पूर्व विदेह जाते हुये कुन्दकुन्दाचार्यकी मोर पिच्छिका विमानसे उड़कर गिर गई थी और उन्हें काम चलाने के लिये गिद्ध पक्षीके परोंकी पिच्छिका दे दी गई थी। इस कारण वह · गृद्धपिच्छिकाचार्य' नामसे भी प्रसिद्ध होगये थे। तथापि सीमन्धरस्वामीके समोशरणमें पूर्व विदेहके चक्रवर्ती सम्राट्ने उन्हें मुनियों में सबसे छोटा देखकर उनकी बिनय · ऐला ( छोटे ) चार्य' नामसे की थी। कुण्डकोण्ड नामक देशसे उनका धनिष्ट सम्पर्क रहा था, इसलिये ही ' कुण्डकोण्डाचार्य ' नामसे प्रख्यात् हुये थे। इन्हींका श्रुतिमधुर नाम कुन्दकुन्द' है। (१०) पूर्व विदेहसे लौटकर भाचार्य महोदय धर्मप्रचार और सिद्धांत ग्रन्थोंके अध्ययन में ऐसे कीन होगये कि उन्हें अपने शरीर की भी सुध न रही । उस अथक परिश्रमसे समय बेसमय धर्माध्यानमें लगे रहनेका परिणाम यह हुमा कि गरदन झुकाये रक्खे २ उनकी गरदन टेड़ी होगई। लोग उन्हें 'वक्रग्रीव' कहने.
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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