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________________ तीसरा भाग राज्याधिकारी था। उसने मौर्यवंशका संहार किया था। खारवेलने पुष्पमित्रको परास्त करने का दृढ़ संकर किया और वे सेना लेकर मगधकी ओर चल पड़े और गोरथगिरि पर उन्होंने अपना अधिकार जमाया। कई कारणोंसे वे वापिस कलिंग लौट भाए । वारवेल के इस माक्रमणकी खबर यूनानके डिमिष्ट्रियस बादशाहको लगी। उसने मथुग पंचाल और साकेत पर अपना अधिकार जमा लिया. था। इस खबरसे वह अपनी सैना लेकर पीछे हट गया। (८) राज्यकालके १२ वें वर्ष स्वारवेलने उत्तरकी ओर माक्रमण किया। मार्गके अनेक राजाओं पर विजय करते हुए के मगधकी राजधानीके पास पहुंच गए और गंगा नदीको पारकर पाटलीपुत्रमें दाखिल होगए । उन्होंने नंदकालके प्रसिद्ध महल सुग को घेर लिया। शुङ्गनृप पुष्पमित्र इस समय वृद्ध होगए थे। उनका पुत्र बृहस्पति मित्र मगधका शासक था। उसने खारवेलकी साधीनता स्वीकार की और भनेक बहुमूल्य रत्नादि भेटमें दिए । वहांसे वे 'कलिङ्ग जिन' की प्रसिद्ध मूर्ति ले आए, जिसे नन्दराज कलिङ्गसे लाए थे। (९) खारवेलने सारे भारतपर विजय प्राप्त की । पांड्य देशसे लेकर उत्तरापथ और मयघसे लेकर महाराष्ट्र देशतक उनकी विजयपताका फहराती थी। (१०) खारवेलने प्रजाहित के लिए 'तनमुतिय ' नामक स्थानसे नहर निकलवाई, और एक बड़े तालावका जीर्णोद्धार कराया। (११) प्रजाकी मुविधा के लिए उनोंने “पौर" और 'जान
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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