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प्राचीन जैन इतिहास । ७३ दूत राजपुरके राजाके पास आया था, उसने जब यह हाल देखा. तब वह दौड़ा हुआ रावणके पास गया। और नारदको यज्ञकर्ताओं द्वारा दुःख पहुंचानेके समागर कहे । रावणने अपने कई सामन्तोंको नारदकी रक्षाके लिये भेना। और स्वयं भी तेन बाहनों पर चढ़ कर वहां पहुंचा । नारदको उनसे बचाया और यज्ञकर्ताओंको बहुत पीटने लगा । यज्ञकर्ता, रावणसे विनय अनुनय करने लगे और आगेसे ऐसा न करनेकी प्रतिज्ञा की : तब नारदने रावणको समझा कर यज्ञकर्ताओंको छुड़ाया । राजापुर नरेशने भी रावणकी स्तुति कर आधीनता स्वीकार की और अपनी पुत्री कनकप्रभाका रावणसे विवाह किया। रावण वहां एक वर्ष तक रहा । कनकप्रभासे कृतचित्रा नामक पुत्रीका जन्म हुआ।
(छ) रावणको इसी बीचमें इतना समय लग गया कि कृतचित्रा विवाह योग्य हो गई थी। इसलिये रावणने मंत्रियोंसे सलाह ली कि कृतचित्राका विवाह किसके साथ करना उचित है । क्योंकि इन्द्रके साथ युद्ध करनेमें जीतनेका कुछ निश्चय नहीं अतएव कृतचित्राका विवाह कर डालना उचित है। तब मथुरके नरेश हरिवाहनने अपने पुत्र मधुको बुला कर रावणको दिखलाया। मधु विद्वान् , रूपवान, चतुर और विनयी था। रावणका भक्त था । रावणने उसे पसंद किया। मंत्रियोंने भी उसीके लिये सम्मति दी । अतएव रावणने कृतचित्राका विवाह मधुके साथ कर दिया । मधुको असुरेन्द्रके द्वारा त्रिशूलरत्नकी प्राप्ति भी हुई थी। क्योंकि असुरेन्द्र और मधु दोनों पूर्व