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________________ प्राचीन जैन इतिहास। ४७ सामिग्री इकट्ठी करनेके लिये सगरसे कहा । सगरने . उनका कहना मानकर यज्ञ करना प्रारम्भ किया। उस यज्ञ पर श्रद्धा दिलाने को महाकालने अपने सेवकों द्वारा फेलाये हुए रोगोंको बंदकर दिया और यज्ञमें होमे हुए पशु ओंको विमानमें बिठलाकर आकाशमें फिरते हुए दिखाया। तब रानाने अपनी रानी सुलसाको भी यज्ञमें होम दिया । पर पीछेसे उसके वियोगसे दुःखी होकर एक जैन साधुसे पूछा कि मैंने जो यह कृत्य किया है वह धर्म है या अधर्म । जैन साधुने उसे अधर्म बतलाया और कहा कि तेरा सात दिन बजपातसे मरण होगा और तू नरक जायगा । प्तगरने यह बात उस महाकाल व पर्वतसे कही। उन्होंने मैन साधुको झूठा सिद्ध करनेके लिये सुलसाको विमानमें बैठी हुई मगरको दिखलाई और उस बनावटी सुलसासे कहलाया कि मुझे यज्ञके प्रभावसे स्वर्ग मिला है । तब सगरने फिर दृढ़तासे यज्ञ करना प्रारम्भ रखा और अन्तमें वज गिरनेके कारण अपने साथियों सहित नरक गया । (च) सगरके मन्त्री विश्वासुने सगरका राज्य लिया और फिर यज्ञ करनेका विचार किया। क्योंकि इसे मी मारनेके लिये महाकालने सगरका रूप व सुलताका रूप बनाकर स्वर्गाके आनंदके साथ विश्वभूतको दिखलाया था। जब नारदने सुना कि विश्वभूत यज्ञ करना चहता है तब नारद उसके पास जाकर अहिंसा धर्मका उपदेश देने लगा। पर्वतने कहा
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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