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प्राचीन जैन इतिहाम।. ३३
___ (७) वैराग्य होते ही लोकांतिक देवोंने आकर स्तुति की। फिर आपने श्वेत नामक वनमें तीनसों रानाओं सहित मार्गशीर्ष सुदी ग्यारसके दिन दीक्षा धारण की । इन्द्रादि देवोंने तप कल्याणकका उत्सव मनाया ।
इसी समय भगवान् मनःपर्यय ज्ञानके धारी हुए ।
(८) दो दिन उपवास कर मिथिलापुरमें नंदिषेण रानाके यहां आहार लिया तब देवोंने रानाके आगनमें पंचाश्चर्य किये।
(९) मगवान् मल्लिनाथने छह दिनमें ही तपकर कर्मों का नाश किया और पौष वदी प्रतिपदाके दिन केवलज्ञानके धारी सर्वज्ञ हुए । इन्द्रादि देवोंने ज्ञान कल्याणकका उत्सव मनाया। (१०) आपकी सभाका चतुर्विध संघ इस मांति था ।
२८ विशाखदत्त आदि गणघर ५५० पूर्व ज्ञानके धारी २९००० शिक्षक मुनि २२०० अवधिज्ञानी १२०० केवलज्ञानी १४०० वादी मुनि २९०० विक्रिया रिद्धिके धारी १७५० मनःपर्ययज्ञानी
४०००२८ ५५००० बंधुषेणा आदि आर्यिका १००००० श्रावक ३०.००० श्राविकायें.. ..